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Sunday, September 5, 2010

तो!

तल्ख़ होने से पहले,रिश्ते गर भुला दें तो
महफ़िल के जगमगाते सितारें,बुझा दें तो
तुम्हारे साए के मुन्तजिर, क्यों रहें हम,
इनके नाजो-अंदाज़  ही मिटा दें तो !


चलो, रहमो-करम रहा, तुम्हारा अब तलक
जिए तो ऐसे कि,जिंदगानी गाती रही अब तलक
और देखो,किस कदर रुसवा किया ज़माने ने 
अस्तित्व ज़माने का ही दिल से हटा  दें तो !


तुम न सही,कोई न कोई तो है दिले बेकरार 
किसी को रहता तो है,हमारा भी इंतज़ार
तुम न आये तो आ जायेगा कोई और भी 
तुम्हारे इंतज़ार कि शमा अब हम,बुझा दें तो!

3 comments:

ओशो रजनीश said...

अच्छी पंक्तिया लिखी है आपने .....

यहाँ भी आइये .....
(आजकल तो मौत भी झूट बोलती है ....)
http://oshotheone.blogspot.com

santosh kumar said...

" तुम न सही,कोई न कोई तो है दिले बेकरार
किसी को रहता तो है,हमारा भी इंतज़ार
तुम न आये तो आ जायेगा कोई और भी
तुम्हारे इंतज़ार कि शमा अब हम,बुझा दें तो! "

बेहद सुन्दर, बहुत ही अच्छी रचना नही !

Ra said...

आपने निमंत्रण दिया ,,अच्छा लगा , फिलहाल समय की कमी है ,,,तो अनुशरण ही कर पाया हूँ ....समय निकाल कर आपके लेख और रचनाये भी अवश्य पढूंगा , शब्दों के इस सुहाने सफ़र में आज से मैं भी आपके साथ हूँ , इस उम्मीद से की सफ़र शायद दोनों के लिए कुछ आसान हो .....मिलते रहेंगे दोस्त ,,,अभी चलता हूँ !!!