मेरे दरवाजे कोयल बोलती है !
सुबह का सूरज भी
जब अलसाया रहता है
माँ के आँचल से मुंह ढांपे
धीरे-धीरे आँखें खोलता है
अख़बार की मुट्ठी बाँधे जब ,
अमराइयों में बयार डोलती है.
मेरे दरवाजे कोयल बोलती है !
कुहू-कुहू की लयात्मक ध्वनि ,
मुझे मदहोश बना देती है
ख़ामोशी जब खामोश बना देती है
दुलकी चालों से चलती है
पापा की आँखों में
पूत के भविष्य की चमक
सुबह ,जब सूर्य की तपिश का
भार तोलती है
मेरे दरवाजे कोयल बोलती है !
दूर किसी आंगन के मंदिर से
घंटियों की मधुर रुनझुन
पानी की टोंटी से बहती धार पर
किसी रामनामे की धुन
कहीं अलसाये चूल्हे से
निकाली जाती राख की सोंधी
खुशबू !
मन-मंदिर के नए द्वार खोलती है
मेरे दरवाजे कोयल बोलती है !