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Thursday, April 28, 2011

कोयल बोलती है !

मेरे दरवाजे कोयल बोलती है !

सुबह का  सूरज भी 
जब अलसाया रहता है 
माँ के आँचल से मुंह  ढांपे 
धीरे-धीरे आँखें खोलता है 
अख़बार की मुट्ठी बाँधे जब ,
अमराइयों में बयार डोलती है.
मेरे दरवाजे कोयल बोलती है !

कुहू-कुहू की लयात्मक ध्वनि ,
मुझे मदहोश बना  देती है
ख़ामोशी जब खामोश बना देती है 

दुलकी चालों से चलती है 
पापा की आँखों में 
पूत के भविष्य की चमक 
सुबह ,जब सूर्य की तपिश का 
भार तोलती है 
मेरे दरवाजे कोयल बोलती है !

दूर किसी आंगन के मंदिर से 
घंटियों की मधुर रुनझुन 
पानी की टोंटी से बहती धार पर 
किसी रामनामे की धुन 
कहीं अलसाये चूल्हे से
निकाली जाती राख की सोंधी 
खुशबू  !
मन-मंदिर के नए द्वार खोलती है 
मेरे दरवाजे कोयल बोलती है !
 

Thursday, April 21, 2011

आदमजात !


अकेलेपन की त्रासदी ,
उस बुढ़िया की आँखों से 
झाँक रही थी !
मेरे घर आयी थी वो -
काम मांगने !
बेटा , झाड़ू,पोछा कर दूँगी 
बर्तन भी धो दूंगी 
मेरा कोई नहीं है !
कृशकाय, कमजोर देह को ढांपे 
एक झिलंगी साड़ी में उसे देखकर 
पूछा मैंने -
घर में कौन - कौन है !
दो बेटियां , एक बेटा ,बहू
और दो नाती -पोते
'फिर भी काम ढूँढ रही हो '!   
पूछा मैंने .
आँख भर आई  उसकी 
रोते हुए कहा -
बहू खाने को नही देती 
मारती है !
'बेटा कुछ नही कहता !'
फिर पूछा मैंने !
"चुप" कुछ नही कहा उसने .
सोचता रह गया मैं 
क्या हम आदमजात हैं !
 

Tuesday, April 19, 2011

मुक्ति !


स्त्री मुक्ति पर की जाती हैं बहसें 
बातें, संगोष्ठियाँ और न जाने क्या -क्या !
अक्सर औरतों को सुना होगा आपने ,
और 
कहते हैं विद्वजन 
महिला मुक्ति हेतु -
निवृत करो रसोई घर से उन्हें -
नजर आते नही -
बिगड़ते मासूम ,
बिखरे ड्राइंग रूम  !
फास्ट और फ्रोजन फ़ूड हैं अब -
संस्कृति का हिस्सा 
'पॉप' तुम आउट डेटेड हो 
है अब रोज़ का किस्सा  !

इक्कीसवीं सदी के राजकुमार-राजकुमारियां 
अब होंको-पोंको -पो करने लगे हैं 
'एस के पी' ही 
अनुभव  से सराबोर होने लगे हैं !
बस वर्तमान ही बचा है अब ,
आँखें मिचमिचाने को 
चकाचौंध करती रोशनियों में 
दूर का देखा , पास का अनदेखा 
और रात को दिन , दिन को रात
में बदल जाने को !
भविष्य व भूत की बातें क्यों करते हो 
बस आज को जियो 
प्रेम के रस पियो !

Thursday, April 7, 2011

आज मैं आपको  एक   नयी इबारत का दीदार कराने जा रहा हूँ ! इसका लुत्फ़ लीजिये !

پڑھتا رہتاہو 
 خاتون  کوتیرے  تنھی مے کوئی اتا ہوا دیکھا تو چھپا لیتا ہو 
فلک سے کہکشا کا سلام آیا ہے
 اور یقین ہو نہ ہو تم کو میرے لب پر
 کے خدا کے بعد تمہ تمہارا ہی نام آیا ہے

Monday, April 4, 2011

         इंतज़ार  

 देहरी   पर देर से खड़ा , 
करता रहा था तुम्हारा इंतजार!
तुम नही आये, ना ही आया
 कोई संदेसा तुम्हारा! . 
क्यों इम्तिहानों के दौर से
 गुज़ारा करते हो मुझे . 
सब्र, कहीं तल्खी में न बदल जाये.

चाहा था कई बार, भूल जाएँ तुम्हे. 
गालिबन इश्क की इन्तेहाँ नही होती !.
बदस्तूर ,सीने में चुभन रहती है बरक़रार. 
पर तुम्हे क्या , तुम तो बे खबर हो ,
इश्क का आग़ाज़
 कराया था तुमने ही ,
अब अंजाम से पहले 
साथ क्यूँ  छोड़ रहे हो ! 
मेरी तड़प का गर न हो अंदाज़ा तुम्हे .
पूछ लो , उन हवाओं से , 
तुम्हारी बंद खिड़की से
 टकराकर लौट आती है जो बार - बार ,
अक्स तुम्हारा देखने को बेकरार !
ऐसा  ना हो कि, देहरी पर ही दिया बुझ जाये , 
और.............
तुम्हारी नज़रें बेसाख्ता , दर-ब-दर भटका करे ! 

Sunday, April 3, 2011

भारत की विश्व कप जीत पर !


जीत का जश्न मनाओ आज तुम !
झूमो, नाचो, गाओ आज तुम.

विश्व के फलक पर चमकते  सितारे की तरह
रोशन हो जाओ ,फहराओ पताके,
लहराओ आज तुम !

मेहनत तुम्हारी रंग ले के आयी है
हमने भी तुम्हारे लिए ,
आज महफिल सजाई है

सरताज हो तुम हमारे,
 आज दिया है वो अमोल तोहफा !
बस तुम ही तुम हो यहाँ आज दिल में
और अब , 
सारे जहाँ पर छा  जाओ तुम !

चलो, पूरा हुआ आज एक सपना
चूमो कप को, मिलो गले , रोको मत,
बहकने दो कदमों को .
इस सपने की हकीकत पर
ठुमके लगाओ आज तुम !

हम भी पुलकित हैं , भर आयें हैं,
 नैन आज .
इंतजार की घड़ियाँ बीत गयीं हैं अब
इस हकीकत की ज़मीं पर
लड़ियाँ दीयों के जलाओ आज तुम !