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Sunday, July 20, 2008

फ़िर एकबार

बसंत आया नही अब तलक
rah गयी है शीत की रिक्तता
स्नायु रह गए हैं बस आस -भरोसे
हरित स्वप्न दल उमड़ रहे हैं-
सख्त कंक्रीट मे !
वास्त्विक्तावों ने आकर कामनाओं के -
परिचय दिए हैं चेतना के सतरंगी इन्द्रधनुष
पुछ गए हैं!
फ़िर भी- पिछली बार की तरह -
पकड़ कर रक्खा है
किसी एक अनागत भविष्य को ,
astitwa को अपने ठुकराकर -
आरम्भ करते हैं -
naye rah par chalna
एक नयी प्रतीक्षा ---
कल की तरुनी -
उषा की भैरवी मे मिलाना चाहते हैं -
jeewan का नया सुर
फ़िर एकबार