हर बारिश में
तुम्हारे पास होने का अहसास
बुन देता है एक गुंजलक
मेरे चारों ओर ,
बब्ध जाते हैं हाथ पांव
कैद हो जाती हैं सांसें
वक्त भी जाता है ठहर
कुछ लम्हों के लिए
और गुंजलक खुलने पर
मैं पाता हूँ कि बारिश ख़तम हो चुकी है
और मैं रीता रह गया हूँ .
ये खालीपन ,
तोड़ देता ,है जीवन की सारी उम्मीदें
तुम्हारी यादों की घटायें घनघोर हो जाती हैं
बरसता है सावन घनघोर ,
यादें अधूरी ही बरस पाती हैं
पकड़ने की आस में कुछ और बह जाता हूँ
और, फ़िर…फ़िर मैं रीता रह जाता हूँ !