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Wednesday, November 17, 2010

ज़िक्र हो ज़मी का ,या आसमां की बात हो
अब तो ख़त्म होती है वहीँ ,जहाँ तुम्हारी बात हो .
ज़िन्दगी मे मेरे अब है ही क्या तुम्हारे सिवा ,
अब तो बस तुम्ही तुम मेरी हयात हो .
हर वक़्त आँखों मे समाया है तुम्हारा ही अक्स
अब है किसे फिक्र ,कब दिन हो कब रात हो ,
रोशन हैं खुशियाँ इस ज़िन्दगी मे तब तक
जब तक तुम ,ज़िन्दगी के मेरे साथ हो !
                  --- रूप ---

Monday, November 15, 2010

कभी सोचता हूँ 'उन्मुक्त गगन मे पंछी बन उड़ जाऊं 
कभी फिरूं मैं सागर मे,औ बन मीन लहराऊं .
पर बेड़ियाँ पड़ी पांव मे ,कैसे मैं समझाऊं.
मैं मानव उलझा, सीमायें कैसे कर बिखराऊं !

Sunday, November 14, 2010

इस शहर के रास्ते अजनबी,
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे 
मैं अकेला दूर तक चलता रहा
पर तुम हमेशा याद आते रहे .
रोज़ मरते रहे , रोज़ जीते रहे
ज़हर मिलता रहा, ज़हर पीते रहे 
हम,यूँ ही ज़िन्दगी को आजमाते रहे !
कोई नया ज़ख्म जब दिल पे लगा 
एक दरीचा ज़िन्दगी का खुला 
हम भी आदत डाल चुके ,
चोट मिलती रही, चोट खाते रहे.
पर वह  री आदमियत !
हम फिर भी,हमेशा मुस्कुराते रहे .
लोग मिलते रहे,लोग बिछड़ा किये,
हम भी कश्ती अपनी डुबाते रहे 
जब करीब आया किनारा कोई,
हम किनारे से दूर जाते रहे.
आप मिले थे ज़िन्दगी भर के लिए!
राह यूँ क्यूँ छोड़ जाते रहे !
वफ़ा का वास्ता जब भी दिया ,
तुम बस यूँ ही मुस्कुराते रहे 
रुसवा किया ज़माने ने हमें
हम अपनी ही लय मे गाते रहे 
'रूप' ज़िन्दगी कुछ इस तरह काटी 
रोज खोते रहे , रोज पाते रहे !
है गुज़ारिश, तुम पास बैठो हमारे 
डर है ,कहीं मैं खुद मे ही न खो जाऊं !

Friday, November 12, 2010

लगता है,पढने वालों की संख्या कम होती जा रही है, कमेंट्स ही नहीं आते , अरे भाई , कोई अच्छा नहीं तो बुरा ही कह दो , कमसे कम लिखने का एक मकसद तो जारी रहे ,या लगता रहेगा ,यूँ ही की- बोर्ड पर उँगलियाँ फेरते रहे , शब्दों के ताने-बने , जाले बुनते रहे , कुछ भी लिख मारा,और कोई कमेन्ट नहीं , लोग पढने के बाद भी, मुनासिब नहीं समझते की कुछ कह दो , बेचारे ने बड़ी धीरज से ये सोचकर लिखा होगा कि शायद किसी को तो पसंद आएगा ,कोई  तो तारीफ़ करेगा , चलो तारीफ न ही सही ,कोई बुराई ही कर दे, पर कमेंट्स पाने के लिए अब लगता है की लोबी बनानी पड़ेगी, कुछेक को पटाना पड़ेगा , गुहार लगाना होगा कि भाई मेरे,कमेंट्स लिखो , अन्यथा हम लिखना छोड़ देंगे.पर क्या हमारे लिखना ह्होद भर देने कि धमकी ! देने से कमेंट्स आना शुरू हो जायेंगे.या क्या कमेंट्स न आने पर हमारा लिखना प्रभावी हो जायेगा! हरगिज़ नहीं , पर ब्लॉग्गिंग के मठाधीशों की लोबी पर कोई न कोई असर तो पड ही जाना चाहिए . मुझे 'लगे रहो मुन्ना भाई ' का वह सीन याद आ रहा है , जब शिक्षक को अपना पेंसन लेने के लिए एक-एक कर सारे कपडे उतरने पड़ते हैं , और रिश्वतखोर मजबूर होकर  पंसन के पेपर्स पास कर देता है. ( कुछ लोगोंको शायद ऐसा भी आभास हो कि यह तो बेशर्मी कि पराकाष्ठा है ,कमेंट्स पाने के लिए ब्लॉग लिखना. पर अपने अंतर्मन मे झांक कर देखो , कहीं न कहीं हर ब्लाग्गर की यही ख्वाहिश है ,कि उसके लेखों पर कमेंट्स आये ,तो भाई मेरे इतना करो कि अब दनादन कमेंट्स लिख मारों , वरना एक ब्लाग्गर पनपने के पहले ही काल-कवलित हो जायेगा ! हा...हा....हा....हा.....हा.

Wednesday, November 10, 2010

एक शब्द/जो हमेशा ज़ेहन मे मेरे/उभरता रहता है,
लिए हुए एक गहरी ख़ामोशी/बेताब चीखने को.
शब्द /आवाज़ है/जो गले तक आकर बिंध जाता है /काँटों से .
कोशिश होती है/बाहर आने की,
पर.................
हर बार ही/बिंध कर/
लौट जाने के लिए ही शायद/
उभरकर आता है /
यह शब्द !
 

Tuesday, November 9, 2010

चलो, एक नया गीत बुने !
ख्वाबों के महल सजाएँ
रोशन जीवन महकाएं
जगमग हो घर -आँगन अपना
आशाओं के राग गुनें
चलो,एक नया गीत बुने !
तुम चंदा, मैं चांदनी
तुम ख़ुशबू ,मैं रागिनी
तुम,मीठी झंकार
और मैं, ताल और धुनें
चलो एक नया गीत बुने ! 
(समयाभाव... !जारी रहेगा ...)
बेफिक्री का वो आलम है कि न पूछो 
कब हुई शाम,कब सहर.खबर नहीं !

Sunday, November 7, 2010

माँ

तेरे आंचल की इस छांव  को ,
कब से रहा था , पुकारता 
पर, कौन था जो मुझे 
तेरी तरह दुलारता !
माँ- शायद आज समझा है,
मैंने तेरी, चाह को,
अब क्यों रहूँ मैं, भ्रमित
और किसी की राह को !
स्नेह-सिक्त , आँखें तुम्हारी,
ढूंढती हैं हर घडी ,
लाल की इक झलक को -
रहती रही -घन्टों खड़ी !
समझ ही पाया है कहाँ,
और क्या -समझ भी पायेगा 
ना भी पाकर प्यार तेरा ,
प्यार ऐसा पायेगा  !
दुःख-कष्ट, पीड़ा झेलती 
रहती ललन की याद मे.
आश्रित होती गर, कभी किसी के ,
तो,तात की फरियाद मे !
ठेस जो लगती -कभी,
पांव  मे उसके कहीं
पीड़ा भी होती कहाँ!
दिल मे ही तेरे, तो- तभी 
पर,किसने दिया है तेरी,
कुर्बानियों का  सिला  
सुनते आयें हैं -अब तलक
बेटे को माँ से है गिला !

Friday, November 5, 2010

दीप जलाओ, प्यार के !
जगमग हो संसार तुम्हारा,
घर-आंगन मे हो उजियारा,
खुशियों  का परचम लहराए 
गाओ गीत बहार के !
निर्धनता का अंधकार मिट जाये,
हर इंसां ,बस झूमे -गाये
दिग-दिगंत मे यश फैलाये
भारत मे हम जश्न मनाएं,
लोगों के अधिकार के !
सोने की चिड़िया कहलाये
खोये दिन हम वापस लायें.
श्रम के आज कसम हम खाएं.
जोत जगाएं संसार के !


दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं सहित.................