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Friday, October 22, 2010

हो गई आज फिर -
एक डबलरोटी की चोरी!
चौराह पर खड़ा मैं,
भरवा रहा था जब-
गेहूं की बोरी.
तभी, एक उबाल उठा,
भीड़ दौड़ पड़ी -
एक चीथड़े से लिपटी अधेड़ पर
नोंच दिए चीथड़े उसके
सड़क पर पड़े -डबलरोटी के टुकड़े ,
और टुकड़ों से बड़ा फटा चिथड़ा !
विवैयां-झांकती चेहरे से ,
(शायद पैरों मे देखे हों आपने!)

जोश-भीड़ का ,सवाब पर
अपनी मर्दानगी का दम,
दिखाते हुए कुछ नामर्द !.

लो! पुलिस भी आ गई !
घसीट लिया 'चीथड़े को'
थाने तक!
लगे तमाचे, थप्पड़ ,लातें ,जूतें.
वाह री किस्मत !
देखा नहीं ,किसी ने 'पीठ से लगा पेट'
निस्तेज चेहरे पर जब -
हरकत हो गई बंद,
हवाइयां उड़ने लगी-
मर्दों के चेहरों पर!

एक जाबांज सिपाही-
बढ़कर आया,
थानेदार को ढ़ाढस  बधाया!
कोई नहीं सर!

'बीचोबीच सडक के डाल इसे
दुर्घटना का रूप देते हैं.'
संतोष की साँस ली
थानेदार ने !
भीड़ ने भी अपनी राह पकड़ी,
और देखा मैंने-
डबलरोटी के चीथड़े
सड़क पर !

Wednesday, October 20, 2010

यात्रा वृतांत

बलिया से इलाहबाद रेलगाड़ी से जा रहा था .रिजर्वेसन नहीं मिलने के कारण जनरल बोगी मे सवार हुआ. ज़ल्दी इतनी कि सफ़र के साथी अर्थात कोई रिसाला, समाचार पत्र,कोई पुस्तक भी नहीं खरीद पाया.खैर, ट्रेन मे अत्यधिक भीड़, किसी तरह अपने आपको ठूंसा और सामने ही ऊपर के बर्थ पर , जहाँ लोग सामान वगैरह रखते हैं, अपने आपको पटक दिया और सांसों को नियंत्रित करने का प्रयास भी ! तभी निचली सीट पर  शोर-शराबा शुरू ! देखता क्या हूँ , एक तरफ एक बुज़ुर्ग से सज्जन बैठे हैं , दूसरी तरफ एक नवयुवक और एक सभ्रांत से लगने वाले व्यक्ति उसी मे अपने -आपको ठेलने के प्रयत्न मे लगे हैं, पर उनके ठीक सामने के बुज़ुर्ग को आपत्ति है,और उन्होंने अपनी टाँगे अड़ा रक्खी हैं ताकि वे बैठ ना पायें, खैर किसी तरह उन सज्जन को भी स्थान प्राप्ति हो गयी .बुज़ुर्ग के साथ शायद उनका बेटा,उन्हें छोड़ने आया है, इसी बीच सज्जन ने कह दिया 'उम्र बढ़ने के साथ ज़रूरी नहीं की बुद्धि का विकास हो ही जाये' बस इतना सुनना था की बुज़ुर्ग के पुत्र , जो उन्हें छोड़ने आये थे, हत्थे से उखड पड़े और लगे गाली-गलौच करने , मार-काट की नौबत आ पहुंची . कोई भी पक्ष झुकने को तैयार नहीं, किसी तरह बीच-बचाव किया गया. ट्रेन चल दी, बुज़ुर्ग और सज्जन दोनों ही शांत हो गए . चूँकि मेरे पास खुद को व्यस्त रखने का कोई साधन नहीं था , मैंने सोचा आज यात्रिओं का वृतांत ही सुना जाय,और सफ़र इसी तरह काटने का प्रयास किया जाय .ट्रेन अगले स्टेशन पर रुकी, कुछ यात्री चढ़े, कुछ उतर भी गए .मेरे सामने की उपरी बर्थ पर कुछ तीन-चार लड़के आकर बैठ गए, शायद कहीं कोई भरती वगैरह के लिए जा रहे थे. थोड़ी देर की चुप्पी के बाद उनमे चुहलबाजी शुरू हो गई और जैसा कि अक्सर देखा जाता है , उन सबों मे बड़ा आत्मीय (!)  सम्बन्ध था , एक दूसरे को रिश्तों मे संबोधित कर रहे थे, ( आप समझ ही गए होंगे!) बातचीत की शुरुआत कामनवेल्थ गेम्स से हुई , मुद्दा था -सरकार द्वारा कामनवेल्थ गेम्स पर अनायास  पैसों का खर्च. मुझे उनकी जानकारी और सरकार को सरासर कोसने पर आश्चर्य हो रहा था , उनके हिसाब से यह सब अनावश्यक था .और सरकार को इन पैसों का उपयोग किसी विकास कार्यों पर खर्च करना था. उनमे से एक इस बात पर असहमत था और कामनवेल्थ गेम्स  के आयोजन को सही ठहरा रहा था . थोड़ी ही देर बाद विषयांतर हो गया और मुद्दा बदल कर आरक्षण पर आ गया. कहने लगे , साले मादर..,(माफ़ कीजियेगा, ये मेरे शब्द नहीं हैं.) सरकार भी देश को डूबाने पर लगी है, अब देखो.. जनरल के लिए कम्पटीशन मे जहाँ १२० नम्बर चाहिए वहां एस-सी, एस-टी को साठे नम्बर चाहिए.आर्मी मे सीना भी कम्मे चौड़ा चाहिए , लम्बाई भी कम्मे होनी चाहिए. अबे अब साठ नम्बर वाला साठे लायक काम न करेगा....  अब मेरी समझ मे नहीं आया,मैं क्या करूँ , टिपण्णी करने की इच्छा तो हो रही थी , पर वे इतने सभ्य! थे कि हिम्मत नहीं कर पा रहा था. ( पर है यह सोचने वाली बात !) आपकी राय जानना चाहूँगा! यदि उचित समझें तो बताने का कष्ट करेंगे. थोड़ी ही देर बाद फिर विषयांतर हो गया,अबकी बात बदलकर क्रिकेट पर आ गयी, शुरुआत हुई धोनी महाशय से! अबे धोनिया  कुच्छोऊ  नहीं खेलता , साला(!) खाली पैसा कमाने मे लगा है , पहिले जब कैप्टन नहीं था तब अच्छा खेलता था . सचिनवा नै रहे तो इंडिया टिमे डूब जाय. अब मुझे उनकी बातों मे थोडा रस आने लगा था . मैंने उत्साह वर्धन हेतु कह दिया. सचमुच सचिन का मुकाबला कोई नहीं कर सकता ,पोंटिंग हो सकता है, सचिन का रिकार्ड तोड़े. बस, इसके बाद तो उन लड़कों की चर्चा क्रिकेट के सेलेक्शन से लेकर सचिन की जन्मकुंडली  तक चली. कहते रहे . पोंटिंग वा साला! बहुते बदमाश  है, पर सचिन का रिकार्ड कब्बो नहीं तोड़ पायेगा. सचिनवा मे जो पावर है , केतनो टूटेगा, फूटेगा लेकिन अन्दर आके दनादन शतक जोड़ देगा ! पोंटिंग वा का बापो ऐसा नहीं कर सकता है, वैसे भी उसका खेल ख़तम.और जानते हैं, इ सेलेक्टर लोग भी तो टेलेंट  को नहिये खेलने देगा . सब अपना भाई-भतीजा लोग को घुसता है , आइ प़ी एल  मे देखिये केतना अच्छा  खेलाडी लोग आया, सौरभ शुक्ल जैसा लोग. फिर , बात इंडिया -आस्ट्रेलिया वन  डे मैच पर आ गई. हरभजन का नया नाम! हरिभजन सुनने को मिला, बड़ा बढ़िया खेलता है , जरुरत पड़ने पर छक्को मारता है, लेकिन देखो,उसको भी नहीं छोड़ा सबब. अस्ट्रेलिया वाला भी उसको हटाने  के फेर मे मंकी वाला इल्जाम लगा दिया. एंड्रू साईं मंडवा भी पीछे ही लग गया था. चलो ई अच्छा हुआ की क्रिकेट बोर्ड थोडा ठीके ठाक रहा,नै तो हरिभजन्वा का भी कामे तमाम था. परिचर्चा या कह लें वार्ता चलती ही रहती पर इस बीच हम प्रयाग पहुँच चुके थे , मैंने अपना बोरिया -बिस्तर. अरे भैय्या , एक छोटा सा बैग ही था , उठाया और चल पड़े .

तमाम उम्र काटी है बुजुर्गियत  मे
कभी धूल से इक पत्थर तो चुना होता !

Saturday, October 16, 2010

विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनायें !
विजयदशमी कि हार्दिक शुभकामनायें !
विजयदशमी, बुराई पर अच्छाई कि जीत. एक  ऐसा पर्व जो ना केवल नवरात्रि कि महिमा का बखान करता है, अपितु भगवान राम के रावण विनाश का भी बखान करता है, मान्यता है कि आज के ही दिन भगवान श्रीराम ने रावण का बध किया था और देवी सीता को लंका के अशोक वाटिका से मुक्त किया था . आज इस पर्व के पावन अवसर पर मै, आप सबको बधाई देता हूँ.और आपके सुखमय भविष्य की कामना करता हूँ. भारत जैसे देश मे , जहाँ विभिन्न प्रकार की जातियां, धर्म, संस्कृति न केवल जीवित है , बल्कि आपने समुच्चय रूप मे पुष्पित , पल्व्वित होती है  .किसी पर्व विशेष का उत्साह, किसी वर्ग विशेष तक ही सीमीत नहीं रहता, इसका असर पूरे समाज, और राष्ट्र पर पड़ता है. विश्व  के कई उन्नत देश जब आज  आन्तरिक कलह, द्वेष और विघटन के शिखर पर हैं , मुझे अपने देशवासियों को  एक सन्देश देना है. निम्नलिखित कविता प्रभाव डालेगी और यदि हम स्वतः इसका पालन करें तो निश्चित ही हमारे विकास का मार्ग प्रशस्त होगा.


विपदाएं तो आएंगी, सखा मेरे,
जब भी लोगे तुम, एक दृढ संकल्प.
ठोकरें तो लगेंगी ही राह मे ,
बनना चाहोगे, जब एक विकल्प.
नियति ने क्या कभी, 
मारी है ठोकर-
उस संत को,
भरा है जिसमे केवल आत्मबल !
यह आत्मबल ही पहुंचाएगा,
 तुम्हे शिखर तक,
तुम गर आज करो -एक संकल्प.
विकल्प तुम तो हो सकते हो
होगा ना कोई, तुम्हारा विकल्प !

Thursday, October 14, 2010

तल्ख़ होने से पहले,रिश्ते गर भूला दें तो !
महफ़िल के जगमगाते सितारें बुझा दें तो
तुम्हारे साये के मुन्तजिर क्यों रहें हम,
साये के नाजो-अंदाज़ ही मिटा दें तो !

चलो,रहमो-करम रहा तुम्हारा अब तलक
जियें तो ऐसे कि जिंदगानी गाती रही अब तलक
और देखो,किस कदर रुसवा किया ज़माने ने 
इस ज़माने के अस्तित्व ही भूला दें तो !

तुम ना सही कोई ना कोई तो है दिले बेकरार
किसी को रहता तो है हमारा भी इंतजार
तुम ना आये तो आ जायेगा कोई और भी
तुम्हारे इंतजार की शमा अब हम बुझा दें तो !



दिल की धड़कनों ने ली हैं अंगड़ाइयां 
एक पुराना ज़ख्म फिर से उभर आया है !

Wednesday, October 13, 2010

ये नीर ख़ुशी के, या गम के !

सपनीले नैनों मे तेरे
तिर आई घनघोर घटा  
ये नीर ख़ुशी के, या गम के !

झिलमिल तारे,चटका ये चाँद 
चहुँ और दीप्त है साँझ-विहान 
फिर भींगी क्यों तेरी पलकें !

कलरव करती,मदमाती सरिता 
उत्तुंग शिखर से गिर कर भी 
करती है देखो, मधुर गान
नयना तेरे हैं क्यों छलके !

तुझमे अभिहित है यह सृष्टि 
तू ही तू है है जग की दृष्टि
फिर काहे का गमगीन शमा
सूरज डूबे या चाँद ढलके !

Friday, October 8, 2010

वह रोता बचपन !

वह रोता बचपन!
धूल से अटा नंगा बदन,
फैलाये हाथ,कुछ बोलते,
आवाज़ मे तल्खी लिए
वह रोता बचपन!

आँख से बहते आंसू
गालों पर एक लकीर सी,
सूखी हुई कहती है ये
इन सांसों की कीमत नहीं.
वह रोता बचपन!

दिन खेलने के गोद मे,
तपती हुई रेत की मानिंद
जलती हुई धरा पर
फैलाये हाथ, कुछ बोलते
वह रोता बचपन!

(कविवर 'निराला' को श्रद्धान्जली स्वरुप) 
( निराला जी की स्टाइल से प्रभावित,'वह तोडती पत्थर'!)

Thursday, October 7, 2010

एक बेहद पर्सनल सी कविता: शायद आवश्यक है!

क्रोध हृदय का उमड़ा है,
मन को लगी है ठेस कहीं.
पर शायद यह दोष हुआ ,
शायद तुम्हारा दोष नहीं.
चंचल  मन की स्थिरता
झांको, देखो,परखो, समझो
परिणाम प्रेम का पाओगे
जब चखोगे,हृदय की कटुता.
आदर्शों के है,झंझावत,
या दोषी  मन की पीड़ा है,
नभ विशाल का प्रतिविम्ब  
या धरती की शीतलता है.
टकराकर- पर्वत शिखरों से ,
मेघों मे आई लघुता है.
शांत ह्रदय के सागर मे
दर्षित होता कहीं क्रोध नहीं..

क्रोध हृदय का उमड़ा है,
मन को लगी है ठेस कहीं.
पर शायद यह दोष हुआ ,
शायद तुम्हारा दोष नहीं.

Wednesday, October 6, 2010

स्नेह तुम्हारा!

 
स्नेह तुम्हारा,जीवन अमृत
स्वर्गिक,सुखकर,झंकृत-झंकृत
करता जीवन रस मधुर-मधुर,
होता मानव,उपकृत-संस्कृत.
मधुरिम,स्वर्णिम,हर क्षण सुन्दर 
लौकिक-अलौकिक,खिल-खिल कम्पित.
तार  हृदय के गाते गीत,
जीवन तरंग हर्षित-हर्षित .

Sunday, October 3, 2010

एक सन्देश  : प्रेम का !
यह सन्देश उन समुदायों को जो शायद अब समझने लगें हैं , कि नफरत केवल बंटवारा और क्लेश को जन्म देती है ,और अगर थोड़ी-बहुत कलुषता मन मे कही रह गई है , या कुछ तत्व उनमे दुराव पैदा करने का प्रयास कर रहें हैं ,तो मेरी गुज़ारिश को अपनाएं!


प्रेम से सींचो अंतर्मन को,
शांति ह्रदय मे पाओगे.
जीवन कि मधुरता का
आनंद भी तुम बिखरावोगे.

ध्येय अगर हो समता का
प्रकृति होगी स्वर्ग समान,
भटकोगे नहीं-मृगतृष्णा मे
आधार स्वछन्द बनाओगे.
प्रेम से सींचो अंतर्मन को....

अपार स्रोत से भरा हुआ,
तन-मन यह तुम्हारा है.
मरू-थल मे रह कर भी,
मधुमास नेह बरसाओगे.

प्रेम से सींचो अंतर्मन को .........( आगे और भी है...)

Saturday, October 2, 2010

एक कविता,बापू पर!

बापू-तेरी पुण्य स्मृति मे,
मन रोने लगा है फिर एक बार-
याद तू आने लगा है.

काश,तू होता यहाँ
विचरण करता इस धरा पर-
अवलोकित होते  तुझे -पाषाण ह्रदय !

बापू-राम राज्य की तेरी कल्पना 
धूमिल हो गई है आज,
कलुषित है ये देश- विकृत है ये धरा, 
लहू के सागर, बहते हैं अब!
बेटियां-नुचती हैं यहाँ -जब,
पूजें हम तुझे कैसे, कब?
तू ही बता -हम हैं कहाँ!

आ देख, फिर से एकबार
जिस धरा पर गिरे,तेरे लहू
-न्योछावर होने की खातिर,
उसी धरा पर-आज यहाँ,
कालिमा बिखरी पड़ी!

लहू भी तेरा, 
धूमिल पड गया-
इस 'कलुषित कालिमा' से
आ जा फिर एक बार-
बापू-ये दिल जाने क्यों आज,
ज़ार-ज़ार होने लगा है,
याद मे तेरी, रोने लगा है !

Friday, October 1, 2010

कटी पतंग-
दूर तक हवा के संग,
उड़ती चली जाती है  -
लहराती डोर ,
हवा के तेज थपेड़ों के बीच!

ना जाने कितनी उमंगें,कितने अरमां -
लेकर उडी थी यह,
वादा किया था,डोर के संग
साथ नहीं छूटेगा
आसमां के दूसरे छोर तक!

छोड़ा साथ-
मंजिल का नहीं है, 
कोई ठिकाना 
दूर तलक-
एक अंतहीन यात्रा
अनुभवहीन!
बस, थपेड़े ही बन कर
रह गयी-नियति.
क्या,कभी चाहा था- परिणाम ऐसा 
पर कौन है-जिसे कारण कहा जाय
तो आओ-फिर उड़ें,
शायद अबकी बार,
आसमां के दूसरे छोर तक 
हो अपना साथ!