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Wednesday, October 6, 2010

स्नेह तुम्हारा!

 
स्नेह तुम्हारा,जीवन अमृत
स्वर्गिक,सुखकर,झंकृत-झंकृत
करता जीवन रस मधुर-मधुर,
होता मानव,उपकृत-संस्कृत.
मधुरिम,स्वर्णिम,हर क्षण सुन्दर 
लौकिक-अलौकिक,खिल-खिल कम्पित.
तार  हृदय के गाते गीत,
जीवन तरंग हर्षित-हर्षित .

3 comments:

ZEAL said...

स्नेह तुम्हारा,जीवन अमृत
स्वर्गिक,सुखकर,झंकृत-झंकृत

bahut sundar rachna .

.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

रूप जी,
अद्भुतअनुभूति!!

वीना श्रीवास्तव said...

बहुत अच्छी रचना

http://shikanjee.blogspot.com/