खिलती कली सी _जूही की
मदिरा के छलकते प्याले सी
तबस्सुम लबों का तुम्हारा_
रूप कवितावों सा तुम्हारा
समर्पित हर लक्ष्य को शायद ,
ऐसा कर सकते हो -
तुम ,सिर्फ़ तुम ही,-साथी मेरे ।
खिलती कली सी _जूही की
मदिरा के छलकते प्याले सी
तबस्सुम लबों का तुम्हारा_
रूप कवितावों सा तुम्हारा
समर्पित हर लक्ष्य को शायद ,
ऐसा कर सकते हो -
तुम ,सिर्फ़ तुम ही,-साथी मेरे ।
सुनो, कि बहरे नही हो तुम
होती हैं यहाँ बुराईयाँ
`निरपराध को अपराधी `
सिद्धा करने की साजिशें !
देखो, के अंधे नहीं हो तुम,
अत्याचार- समर्थ का असमर्थ पर
बुराई की अच्छाई पर होती जीत !
महसूस करो - के स्नायु तुम्हारे शिथिल नही हुए -अब तक
पीसतीहुई क्रूरता को .
उस असहाय ,आश्रित `नामानव `को ???
पर क्यों?
क्यों सुनोगे तुम !
तुम्हारे कान तो
गुलाम हैं
राग
रागिनियों के
तुम्हारी
आंखों ने!
चढा रखी है
रंगीन
मोटी
परत
और तुम्हारे स्नायु!
वे तोमात्र काम के लिए उत्तेजित होते हैं !
---रूप ----