कुछ इल्म हुआ यूँ मुहब्बत के बाद, दामन मे दिल के, एक गाँठ लगी!
खिलती कली सी _जूही की
मदिरा के छलकते प्याले सी
तबस्सुम लबों का तुम्हारा_
रूप कवितावों सा तुम्हारा
समर्पित हर लक्ष्य को शायद ,
ऐसा कर सकते हो -
तुम ,सिर्फ़ तुम ही,-साथी मेरे ।
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