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Tuesday, April 29, 2008

तुम

खिलती कली सी _जूही की

मदिरा के छलकते प्याले सी

तबस्सुम लबों का तुम्हारा_

रूप कवितावों सा तुम्हारा

समर्पित हर लक्ष्य को शायद ,

ऐसा कर सकते हो -

तुम ,सिर्फ़ तुम ही,-साथी मेरे

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