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Sunday, April 6, 2008

सुनो

सुनो, कि बहरे नही हो तुम

होती हैं यहाँ बुराईयाँ

`निरपराध को अपराधी `
सिद्धा करने की साजिशें !

देखो, के अंधे नहीं हो तुम,

अत्याचार- समर्थ का असमर्थ पर

बुराई की अच्छाई पर होती जीत !

महसूस करो - के स्नायु तुम्हारे शिथिल नही हुए -अब तक

पीसती

हुई क्रूरता को .

उस असहाय ,आश्रित `नामानव `को ???

पर क्यों?

क्यों सुनोगे तुम !

तुम्हारे कान तो

गुलाम हैं

राग

रागिनियों के

तुम्हारी

आंखों ने!

चढा रखी है

रंगीन

मोटी
परत

और तुम्हारे स्नायु!

वे तो

मात्र काम के लिए उत्तेजित होते हैं !

---रूप ----

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