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Sunday, August 28, 2011

अन्ना के लिए !

 
रंग लाई है आज मेहनत तुम्हारी , 
चढ़ी  फिर से नई  जवानी है
भूल पायेगा नहीं इसको हिन्दोस्तां ,
आज ऐसी लिखी  कहानी है.
 दर्द कभी झलका नहीं ,चेहरे से. 
नूर हुआ न कम तुम्हारा 
आज पाया है जिसे , 
केवल बस केवल है तुम्हारा
 आंकड़े लोग बनाते रहेंगे , 
कहेंगे हम भी शामिल थे 
पर जो कुछ भी मिला है आज हमे , 
इसके सूत्रधार तुम मुकामिल थे.
गायेंगे राग तुम्हारा, नज़्म तुम्हारा सुनायेंगे .
भ्रष्टाचारी काँप उठते थे, भावी पीढ़ी को बताएँगे .
अन्ना , तुम्हे गाँधी या नेहरु क्यों पुकारे हम !
 तुम अन्ना ही ठीक लगते हो.
आज, जिसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत है
तुम, ऐसी एक लीक लगते हो.
छोड़ कर हमे जाना नहीं
ज्योति कभी बुझाना नहीं
यही  दुआ है, मशाल जलती रहे .
खुशियाँ जीवन की पलती रहें .
उनकी, जिन्हें न सहारा है !
बस जपते नाम तुम्हारा हैं .


Monday, August 15, 2011

  आज का ये पोस्ट मैं समर्पित कर रहा हूँ अपने एक शिष्य को, जिसके साथ एक हादसा हो गया और जिसके लिए मेरे पास ये शब्द रूपी संवेदना है, शायद वह इसे पढ़ ले !


कोई सुन न सुने मुकद्दर उसका 
फ़र्ज़ हमारा है आवाज़ लगाते रहना 
जिंदगी ठोकरें दे चाहे जितनी 
जोत से जोत  जगाये रखना !
आस टूटती नही ,चाहे बाधाएं जितनी आयें 
आस की सांस सजाये रखना
लोग तो कुछ भी कहते रहते हैं 
तुम हौसलों के पंख लगाये रखना !

Sunday, August 14, 2011

सभी ब्लॉगर बंधुओं एवं बांध्वियों को ६५ वें स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ . हमारा देश यूँ ही उन्नतियों के आसमान छुए,और तरक्की की ओर अग्रसर हो .

Saturday, August 6, 2011

वे पत्र !

आज डाकिये को देखकर 
अनायास ही याद आ गयीं तुम !
कॉलेज के वो दिन 
जब प्रेम के बीज अंकुरित हुए थे ! 
तुम्हारा पहला पत्र
जो एक छोटे से कागज़ के टुकड़े में था ,
लिपटा हुआ स्नेह सिक्त भावों से   
प्रेम का विशाल वट-वृक्ष बना जो !
तुम्हारे उन पत्रों की आस में घंटों 
दीवानों की तरह  करता  था
डाकिये का इंतजार 
और
उसे देखते ही मन-मयूर नाच उठता था  
और
जब कभी  डाकिया अनदेखा कर आगे निकल जाता 
तब 
हजारों आशंकाएं , हजरों सवाल  मन की तरंगों को मथने लगते 
क्या हुआ होगा !

तुम्हारे पत्र बार-बार पढता था मैं 
और हर बार ,  एक नई उमंग ....
एक नया ही अर्थ ,
निकलता था उन शब्द समूहों से !
वे पत्र देह बन जाते और 
बिखेरते थे खुशबू   
तुम्हारे अंदाज़ का पर्याय होते थे 
वे पत्र !

आज भी ,किताबों के पन्नो से 
जब-तब झांक लेते हैं 
और मैं खुद को रोक नही पाता
उन्हें पढने से !
जबकि हज़ार तल्खियाँ हैं 
जिंदगी की .
तुम्हारे  वे पत्र 
आज भी 
खुशबू बिखेर जाते हैं !

Tuesday, August 2, 2011

हरजाई !

सावन के झूलों में 
पींगे पिया के याद की समाई हैं 
तुम आओ ना,रिमझिम की झड़ी 
तुम्हारे प्यारे  स्पर्श का संदेशा तो ले आईं हैं !

नयन राह तकते हैं ,
झोंके बयार के मादक लगते हैं 
ऐसे में जब गूंजती है प्यार की शहनाई 
पिया ,नस-नस में एक हुलास सी ले आई है 

सखियाँ जब करती हैं रात की बातें 
गुजारी बाँहों में सौगात की बातें 
तुम्हारे स्नेहिल-स्पर्श की  यादें
मेरे दिल की धडकने देती हैं दुहाई 
लेती हैं नाम तुम्हारा ,  कहती हरजाई हैं 

तुम आओ ना ,रिमझिम की झड़ी 
तुम्हारे प्यारे स्पर्श का संदेशा तो ले आयीं हैं !


Monday, August 1, 2011

किस्मत !


 शायद पता  नहीं  तुम्हे 
कई बार अश्क जो सूख जाते हैं, 
गालों पर लकीर जैसे  
एक पूरी कहानी का सामां होते हैं ,
छुपी होती है उन लकीरों में ,
पेट की बे-बसी .
छत से टपकते बूंदों की त्रासदी !
हरियाली नहीं भाती , उन्हें 
तुम्हारी तरह, नही निहारते , वे
खूबसूरत तस्वीरें. लहराती वादियाँ,
उन्हें तो धरती भी गोल है, इसका नहीं पता .
रोटी की सोंधी खुशबू का एहसास नहीं होता ,उन्हें .
उन्हें तो बस ,पता है भूख.
जिसे  उन सूख चुकी लकीरों से कभी-कभी
बुझा लिया करते हैं. 
बड़े गेट के अंदर की रंगीनीयों  ,
का भान नहीं होता उन्हें .
वे  तो बस , ताक में रहते हैं ,
कब  कुत्ते के हाथ लगी रोटी,
उनके कब्ज़े में आ जाय . 
और एक  पार्टी , आज उनके  भी 
नसीब का हमसफर हो !