Pages

Monday, August 1, 2011

किस्मत !


 शायद पता  नहीं  तुम्हे 
कई बार अश्क जो सूख जाते हैं, 
गालों पर लकीर जैसे  
एक पूरी कहानी का सामां होते हैं ,
छुपी होती है उन लकीरों में ,
पेट की बे-बसी .
छत से टपकते बूंदों की त्रासदी !
हरियाली नहीं भाती , उन्हें 
तुम्हारी तरह, नही निहारते , वे
खूबसूरत तस्वीरें. लहराती वादियाँ,
उन्हें तो धरती भी गोल है, इसका नहीं पता .
रोटी की सोंधी खुशबू का एहसास नहीं होता ,उन्हें .
उन्हें तो बस ,पता है भूख.
जिसे  उन सूख चुकी लकीरों से कभी-कभी
बुझा लिया करते हैं. 
बड़े गेट के अंदर की रंगीनीयों  ,
का भान नहीं होता उन्हें .
वे  तो बस , ताक में रहते हैं ,
कब  कुत्ते के हाथ लगी रोटी,
उनके कब्ज़े में आ जाय . 
और एक  पार्टी , आज उनके  भी 
नसीब का हमसफर हो !

6 comments:

सदा said...

बहुत ही सटीक एवं सार्थक अभिव्‍यक्ति ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत संवेदनशील रचना

vidhya said...

बहुत संवेदनशील रचना

रश्मि प्रभा... said...

achhi rachna

Amit Chandra said...

बेहद मार्मिक। तस्वीर संयोजन भी उम्दा।

कविता रावत said...

छत से टपकते बूंदों की त्रासदी !
हरियाली नहीं भाती , उन्हें
तुम्हारी तरह, नही निहारते , वे
खूबसूरत तस्वीरें. लहराती वादियाँ,
उन्हें तो धरती भी गोल है, इसका नहीं पता .
रोटी की सोंधी खुशबू का एहसास नहीं होता ,उन्हें .
..bahut badiya samvedansheel prastuti ke liye aabhar!