Wednesday, September 17, 2008
Monday, September 15, 2008
अब आये हो तुम !
सूख गयीं जब सारी फिजायें
धूल उड़ाती हुई हवाएं
ले आईं हैं बस संजीदी
गुम हो गयीं जब सारी घटायें
क्या कभी गुंजाये हो तुम !
अब आये हो तुम !
शाम उदासी का आँचल ओढ़े
सिमट चली है धीरे-धीरे
खुभतीं हैं नीली आँखों मे
धीमी-धीमी जब शहतीरें
जीवन भी हर्षाये हो तुम
अब आये हो तुम !
Wednesday, September 10, 2008
Thursday, September 4, 2008
अक्स
तुम्हे अपने अक्स मे ही सब नज़र आएगा
देखो देव तुम या देखो इब्लीस
रफ्ता रफ्ता दीवाना बदल जायेगा
मौसम की गमगीनी का हो गुमां
या हो खुशी की लरज़ती फुहारें
तुम्हारे ही आगोश के दरमियाँ
खुदा का हर हुस्न नज़र आएगा
ऐ यारब तूने बनाई है दुनिया ऐसी
कीहर शख्स तुझे ही कोसता है
सच तो ये है के बराबर ही बांटा तूने
तेरी यादों मे परवाना गुज़र जाएगा !
Sunday, July 20, 2008
फ़िर एकबार
rah गयी है शीत की रिक्तता
स्नायु रह गए हैं बस आस -भरोसे
हरित स्वप्न दल उमड़ रहे हैं-
सख्त कंक्रीट मे !
वास्त्विक्तावों ने आकर कामनाओं के -
परिचय दिए हैं चेतना के सतरंगी इन्द्रधनुष
पुछ गए हैं!
फ़िर भी- पिछली बार की तरह -
पकड़ कर रक्खा है
किसी एक अनागत भविष्य को ,
astitwa को अपने ठुकराकर -
आरम्भ करते हैं -
naye rah par chalna
एक नयी प्रतीक्षा ---
कल की तरुनी -
उषा की भैरवी मे मिलाना चाहते हैं -
jeewan का नया सुर
फ़िर एकबार
Tuesday, April 29, 2008
तुम
खिलती कली सी _जूही की
मदिरा के छलकते प्याले सी
तबस्सुम लबों का तुम्हारा_
रूप कवितावों सा तुम्हारा
समर्पित हर लक्ष्य को शायद ,
ऐसा कर सकते हो -
तुम ,सिर्फ़ तुम ही,-साथी मेरे ।
Monday, April 28, 2008
आत्मबल
जब भी लोगे तुम एक दृढ़ संकल्प
ठोकरें तो लगेंगी ही राह मे
बनना चाहोगे __जब एक विकल्प
नियति ने क्या ___कभी मारी है ठोकर !
उस संत को ,भरा हो जिसमे __केवल
___आत्मबल ____
ये , आत्मबल ही तुम्हे पहुँचायेगा
शिखर तक !
तुम अगर आज करो ____ एक संकल्प
विकल्प _तुम तो हो सकते हो
होगा न कोई , तुम्हारा विकल्प ..... ।
शब्द
लिए हुए एक गहरी खामोशी/बेताब/ चीखने को/
शब्द ..../आवाज़ है।
जो गले तक आकर /बिंध जाता है / काँटों से ./कोशिश / होती है कभी ,परन्तु ............
हर बार ही /बिंध कर/ लौट जाने के लिए ही शायद /
उभरकर आता है/
वह ................................ शब्द ।
Sunday, April 6, 2008
सुनो
सुनो, कि बहरे नही हो तुम
होती हैं यहाँ बुराईयाँ
`निरपराध को अपराधी `
सिद्धा करने की साजिशें !
देखो, के अंधे नहीं हो तुम,
अत्याचार- समर्थ का असमर्थ पर
बुराई की अच्छाई पर होती जीत !
महसूस करो - के स्नायु तुम्हारे शिथिल नही हुए -अब तक
पीसतीहुई क्रूरता को .
उस असहाय ,आश्रित `नामानव `को ???
पर क्यों?
क्यों सुनोगे तुम !
तुम्हारे कान तो
गुलाम हैं
राग
रागिनियों के
तुम्हारी
आंखों ने!
चढा रखी है
रंगीन
मोटी
परत
और तुम्हारे स्नायु!
वे तोमात्र काम के लिए उत्तेजित होते हैं !
---रूप ----
Monday, March 10, 2008
चला चल अपनी डगर
बनता न कोई हमसफ़र
गर हो ऐसी बात तो,
तू चला चल अपनी डगर ।
रोडो ने तो हमेशा ही
राह रोका किया है
तू न आस छोड़ दे ,
मार कर उन्हें ठोकर
चला चल अपनी डगर ।
ठेस भी गर लग गयी
भूल जा तू ठेस को
सुख जाएगा लहू
घाव का तू गम न कर
चला चल अपनी डगर ।
मंजिलों का भी अगर
कोई आसरा न हो
राह चल
अपनी तरह
मंजिलों की न फिक्र कर
चला चल अपनी डगर ।
कर्मवीरों के लिए
झुकता रहा है आसमा
फल की चिंता क्यों हो तुझे
तू तो अपना कर्म कर
चला चल अपनी डगर .
रूप