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Monday, September 15, 2008

अब आये हो तुम !

अब आये हो तुम !
सूख चले जब नीर नदी के ,
ठूंठ पड़ गयीं जब शाखाएं
बंज़र हरीतिमा मे -
कोई नयी आस जगाने 
किसको- कब भाए हो तुम,
अब आए हो तुम,-!

तन्हाई जब रास आ गयी
पतझड़ जब बन गए सहारे
ऐसे मे क्यों आए ही तुम
प्यास जगाने, पास हमारे
अब तक ही क्या पाए हो तुम
अब आए हो तुम! ............

सूख गयीं जब सारी फिजायें 
धूल उड़ाती हुई हवाएं 
ले आईं हैं बस संजीदी
गुम हो गयीं जब सारी घटायें  
क्या कभी गुंजाये हो तुम !
अब आये हो तुम !

शाम उदासी का आँचल ओढ़े 
सिमट चली है धीरे-धीरे
खुभतीं हैं नीली आँखों मे 
धीमी-धीमी जब शहतीरें
जीवन  भी हर्षाये हो तुम 
अब आये हो तुम !


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