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Thursday, September 4, 2008

अक्स

नैनों के बंद कपाट खोल कर देखो
तुम्हे अपने अक्स मे ही सब नज़र आएगा
देखो देव तुम या देखो इब्लीस
रफ्ता रफ्ता दीवाना बदल जायेगा
मौसम की गमगीनी का हो गुमां
या हो खुशी की लरज़ती फुहारें
तुम्हारे ही आगोश के दरमियाँ
खुदा का हर हुस्न नज़र आएगा
ऐ यारब तूने बनाई है दुनिया ऐसी
कीहर शख्स तुझे ही कोसता है
सच तो ये है के बराबर ही बांटा तूने
तेरी यादों मे परवाना गुज़र जाएगा !

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