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Friday, December 7, 2012

अच्छा होता !

अच्छा  होता  , गर तुम न मिले होते ,
ये दिल जो मेरा था -
जिसे सहेजकर रखा था हमने ,
जिसकी आरजुएं, मिन्नतें पूरी करते रहे
जिसे सवांरने में उम्र बिता दी
कम-से कम तुम्हारा दीवाना तो न हुआ होता
हमसे बेगाना तो न होता !


अच्छा होते , हम तनहा होते
नदी किनारे बैठ ,
पुरवइयों  के अरमां  जगाते
लहरों की अठखेलियाँ देखते,
कंकर से हिलोर उठाते
तुम्हारी याद में जी तो न जलाते !

अच्छा होता ............
हम झूठी मुस्कान के मुखौटे लगाते
लोग हमे दीवाना तो न कहते
सारी उम्र तुम्हारी यादों में देते गुजार
तुम्हारे ख्वाबों से अपनी रातें सजाते
और फिर ........
दुनियां की भीड़ में,
मुखौटा लगाये ही ......
हम कहीं खो जाते 

Saturday, July 7, 2012

                                                




                                               रिमझिम बूंदों की लड़ी बहारे लेके आयीं हैं ,
                                                  दिल तो अपना है पर प्रीत हरजाई है !
                                                   तुम न मानो  तो कोई बात नहीं 
                                                   पर मेरी तो हर शै से आशनाई है  !

Monday, June 18, 2012

कुछ बिखरे शब्द !

कुछ बूँदें गिरीं हैं फुहारों सी ,
और ज़ेहन पे तारी हैं खुशबू की तरह !

आज फिर से गिला है तुमसे
बारहा प्यार जताने की यूँ कोशिश न करो !

मैंने तो तुमसे सच की गुज़ारिश की थी
ख्वाब तुमने हमारे सजाए ही क्यूँ !

चलो आज फिर से  दुश्मनी कर लें
दोस्तों की फितरत अब रास नहीं आती ! 

Wednesday, May 9, 2012

और शाम तलक , दिए बुझ जाते हैं !

मन की बेचैनी का ज़िक्रे -बयाँ अब क्या करें 
तुमसे मिलना भी चाहे है , और दूर जाना भी 
तुम पास हो तो भूल जाते हैं हम ,
कहनी होती हैं न जाने कितनी ही बातें .
तुम ,जब पास नही  होते , तनहाइयों में 
सपनो के महल बनाते हैं .
बिठाते हैं तुम्हे अपने मन - मंदिर में 
पूजा के फूल तुम्हे चढाते हैं !
शायद पहुँच नहीं पाती , श्रद्धा तुम तक 
तभी तो , आज भी तुम्हे पा ना सके हैं हम 
हर सुबह एक नयी उमंग लेकर जगते  हैं 
और शाम तलक , दिए बुझ जाते हैं !

क्या , कुछ ऐसा ही हाल तुम्हारा भी है 
लोग कहते हैं , दिल को दिल से राह होती है 
फिर क्यों नहीं ख्वाब ये सच होते 
बागों में फूल मुस्काते हैं !
जाने कैसा है ये आलम भी 
दीवार पर आरी -तिरछी लकीरों से 
तस्वीर तुम्हरी बनाते हैं 
तस्वीरों से बातें करते हैं ,
तुमसे नहीं कह पाते हैं 
हर सुबह एक नयी उमंग लेकर जगते  हैं 
और शाम तलक , दिए बुझ जाते हैं !

Monday, April 30, 2012

बारहा टूटे हैं सपने !

बारहा टूटे हैं सपने !
बारहा ठेस लगी है दिल पर ,
ना-समझ फिर भी बाज़ नहीं आता .

उनसे मिलने की ख्वाहिशें लिए बैठा है,
जो हर बार ही फेर लेते हैं नज़रें 
कैसे समझाएं , रास्तें अलग है ,फिर भी 
खुद को ही चोटिल किये बैठा है !

उम्मीदें हर रोज़ बदती जाती हैं
तम्मनाओं की उम्र घटती नहीं लेकिन ,
ख्वाबों के काफिलों से बाहर नहीं आता 
इकरार के इज़हार किये बैठा है .

बारहा टूटे हैं सपने !

Saturday, April 28, 2012

सच है , कभी किसी को मुक्कम्मल जहाँ नहीं मिलता !

सच है , 
कभी किसी को मुक्कम्मल जहाँ नहीं मिलता ,
चाहता है ये दिल , जब तुम पास होते,
खुबसूरत रेशमी एहसास के साये में 
जब हम अपनी कहते , तुम्हारी सुनते
हवाएं जब मदहोश कर रही होंती
तुम्हारे थरथराते होंठ , जब अठखेलियाँ कर रहे होते 
तल्खियाँ ज़िन्दगी की बेज़ार होंती.
 तब, तब केवल तुम और मैं.....!
 रात तो कट जाती है किसी तरह 
पर  दिन , उफ़, दिवा-स्वप्न भी ,
किस कदर कमज़ोर बनाये रहता है .
 चाहता हूँ , भूल जाऊं तुम्हें,      
पर उतने ही याद आते हो तुम .
क्या , तुम्हारे साथ भी ऐसा ही कुछ है ! 
पर नहीं , तुम्हारी बातें !
कहते कुछ और हो , पर 
अर्थ कुछ और ही होता है उनका !
चलो , भूल जायें ,क्या हैं हम, 
कौन सी जिम्मेदारियां हैं हमारी . 
हमें तो बस तुम्हारा साथ अच्छा लगता है .
क्या मुमकिन है तुम्हारे लिए भी 
कुछ ऐसा ही  !
सीमाएं भी , किस कदर , तबाह 
करतीं हैं ,
तुमसे मिलकर ही समझ पाया हूँ . 
ये दिल भी , कभी मेरी सुनता ही नहीं , 
दिमाग समझाने की कोशिश में अनवरत 
लगा रहता है ! 
इसलिए ही शायद ,
कभी किसी को मुक्कम्मल जहाँ नहीं मिलता !  
 

Saturday, March 31, 2012

तुम गर पहले बताते !

 
आए भी__चले भी गए 
खबर हो न पाई .
दावानल से जूझता ही रहा था ये दिल,
तब फिर  तुमने ही दी थी एक बार -
ज़माने की दुहाई ! 
आखिर क्यूँ ---
हर बार ही होता है ऐसा ,
क्या अस्तित्व  की पनप  भी सीमित होती है  !
फिर लो ही क्यूँ, ऐसे कुछ रिश्ते 
खो जाते हैं जो, अँधेरे मे,गुमनामी के
महज़ दिल की तसल्ली को ,
तुम हर बार ऐसा करते हो .
कोई न कोई तो, कहीं न कहीं ,
ठेस पहुँचाता ही है .
ठोकर पत्थर के ही होते हैं-
अब तक तो यही समझा था .
प्यार की मार होगी इतनी गहरी
तुम पहले ही गर, बता देते................!


 

Wednesday, March 21, 2012

एक भूली सी याद !



भूलती नहीं तेरी वो मनोहारी सूरत !
कलकत्ते में बस की खिड़की से देखा था जो ,
आयी नहीं , सपने में भी कभी , ऐसी अनिंध्य सुंदरी
दिल के तारों को धड़का सके जो !
आज, जब उम्र के तीसरे पड़ाव पर हूँ मैं ,
सुविधा-संपन्न ज़िन्दगी , जिसके पांव चूमती है
सामाजिक हैसियत भी, जिसे कहते हैं लोग
कुछ कम नहीं है फिर भी ,
भूलती नहीं , तेरी वो देह-यष्टि
तेरी अनमोल काया -
तू, जो भी थी,
 तू, जो भी है
तू, जहाँ कहीं भी है
तू, जैसी कहीं भी है !
मेरा प्रणय-निवेदन तुझ तक पंहुचा ,गर
उसे स्वीकार कर लेना !
मुझे कृतार्थ कर देना !
यह निवेदन , 'दान्ते'  के 'बीट्रिस' की
तरह तो नही ,
फिर भी, तू यदि इसे समझ सके
तो,
इसे 'पूजा के फूल' के सदृश
स्वीकार कर लेना !
मुझे कृतार्थ कर देना !