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Friday, December 7, 2012

अच्छा होता !

अच्छा  होता  , गर तुम न मिले होते ,
ये दिल जो मेरा था -
जिसे सहेजकर रखा था हमने ,
जिसकी आरजुएं, मिन्नतें पूरी करते रहे
जिसे सवांरने में उम्र बिता दी
कम-से कम तुम्हारा दीवाना तो न हुआ होता
हमसे बेगाना तो न होता !


अच्छा होते , हम तनहा होते
नदी किनारे बैठ ,
पुरवइयों  के अरमां  जगाते
लहरों की अठखेलियाँ देखते,
कंकर से हिलोर उठाते
तुम्हारी याद में जी तो न जलाते !

अच्छा होता ............
हम झूठी मुस्कान के मुखौटे लगाते
लोग हमे दीवाना तो न कहते
सारी उम्र तुम्हारी यादों में देते गुजार
तुम्हारे ख्वाबों से अपनी रातें सजाते
और फिर ........
दुनियां की भीड़ में,
मुखौटा लगाये ही ......
हम कहीं खो जाते 

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