पढ़े कोई, गुने कोई, या फिर यूँ ही एक सरसरी नज़र डालकर ,
चल दे कोई।
असर तो पड़ेगा ही , जिन्हें अर्थ मालूम होगा , और जो न समझ पाएं ,
वे भी अपने चिंतन में इनका ध्यान धरेंगे .
पर फिर ...........सोचता हूँ , इबारतें इतनी तो लिखी हैं , अर्थपूर्ण और अर्थहीन भी
पढ़ते , गुनते भी हैं , लोग यहाँ .
कुछ डालतें हैं सरसरी सी नज़र ,
और चल देते हैं . राह अपनी।
क्या होता नही असर उनपर,
क्या चोट नही पहुंचाते वे शब्द। !
आज जो , जी रहे हैं हम .
उन इबारतों की परछाई है
या है , उन सरसरी निगाहों का असर !
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