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Tuesday, September 20, 2011

एक अधूरा सपना !

कल सपने में देखा था 
एक हसीन भारत / एक खुशहाल भारत ,
हरी-भरी धरा से आवृत 
लहलहाती फसलें, प्रसन्न किसान 
खिलखिलाते बच्चे 
आश्चर्य !
देखा था मैंने , देश के नेता 
फूस की झोपड़ी
गोबर लिपे आंगन में
अपने अनुचरों के साथ 
चर्चा में लीन हैं !
देखा मैंने , अद्भुत दृश्य !
माताएं अपने नौनिहालों के साथ,
अठखेलियाँ कर रहीं हैं 
दूर कहीं हवा में विलीन 
रामचरित मानस के दोहे ,
अजान की आयतें 
चर्च की घंटियाँ
सुमधुर संगीत से आबद्ध !

पाठशालाओं में 
बच्चे समवेत स्वरों में
आह्वान करते हैं !
करते हैं माँ सरस्वती की वन्दना 
गुरूजी के चेहरे पर दिव्य तेज़ है !

सड़कों पर /गाँव के बैलों की घंटियाँ 
लय-ताल युक्त गीत 
और, हाट में गाँव के / कोई मोल-भाव नही !
चहुँ और शांति व्याप्त है 
शांति, जो सुखकर है 
समृद्ध है
वंदनीय है !

बगिया में,कोयल का सुमधुर राग 
पुरवैयों से झूलतीं  डालियों का फाग 
तलैया में श्वेताम्बरों की जाग
देखा था मैंने, कल सपने में !

टूट गया ! /शोर इतना था बाहर/आंख खुली 
तो देखा / पानी की कतार में/ बर्तन लड़ने लगे थे !

Tuesday, September 13, 2011

बधाई !

आज हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर आप सभी ब्लोग्गरों को बधाई.हिंदी की सेवा करते रहिये , यह भारतीयता का पर्याय है ! और इस छोटे से विचार को अपनी सहमति प्रदान करें !


हिंदी एकता है !
हिंदी एक विचार है !
हिंदी विनम्रता है !
हिंदी एक संस्था है !
हिंदी एक सभ्यता है !
हिंदी संस्कार है !

Wednesday, September 7, 2011

अब तो सुधर जाओ!

    
पाकी , सुधरोगे  नहीं तुम! 
फितरत नहीं है तुम्हारी
सुधरने की !
बारूद के ढेर पर बैठे ,
अपनी ही चश्म से  
देखते हो तुम
दुनिया को !
ज़िल्लतें , सौगात हैं 
तुम्हारे लिए !
 इंसानियत का पाठ 
 तुम नहीं पढ़ पाओगे !
 कितनी बार, कितनी ही बार
पीटे गए हो तुम,
पीठ दिखाकर  भागे भी ,
पर फिर वही .........
ये जो निर्दोष मानवता का
 खून तुम करते हो
 क्या हासिल है, तुम्हे !
 शायद यही सीखा है
 तुमने , क़ि तुम अशांत रहो 
 और रहे सारी दुनिया भी !
 कितनी ही, कोशिशे
 ज़ाया की हैं
तुमने.  इंसानियत हासिल
करने की !
अब तो सुधर जाओ, 
जाओ, मुआफ़ किया हमने 
 इस बार भी !
 पर अब नहीं,
बदलो दिमाग़ अब अपने 
नेस्तनाबूद हो जाओगे वरना .
 फ़लक के सितारे तो,
 न बन पाओगे.
मुमकिन है, राख हो जाओ !
और, अपने किये की सज़ा पाओ !

Monday, September 5, 2011

शिक्षक दिवस पर !

आज फिर पूजा गया मैं !
पांचवे सितम्बर को 
याद आ ही गयी मेरी ,
उन्हें , जो मेरी  सेवाओं के
प्रतिफल थे !
जिन्हें बनाने से पहले 
बनना चाहा था मैं.
सच का वो बीज,
जिसे अंकुरित होने में 
पूरे छब्बीस वर्ष  लगे थे!
जिसके पीछे एक ,
सुरक्षित आस थी !
और शुरुआत भी, जिसकी 
तफसील से  गुमराह थी !
कोई 'राधा कृष्णन' नहीं थे,
 जिसके पीछे !
पर, इस पूजा ने,
 इस सम्मान ने,
एक राह तो बनाई है ,
एक उम्मीद तो जगाई है.
एक संकल्प तो दिया है.
तुम्हारे लिए ही जलूँगा .
और कुम्हार भी बनूँगा 
तुम्हारी आशाएं गढ़ूंगा .
संकल्प आज लेता हूँ !
मेरे प्यारों .
भविष्य रोशन होगा तुम्हारा !
भविष्य रोशन होगा तुम्हारा !