कुछ बूँदें गिरीं हैं फुहारों सी ,
और ज़ेहन पे तारी हैं खुशबू की तरह !
आज फिर से गिला है तुमसे
बारहा प्यार जताने की यूँ कोशिश न करो !
मैंने तो तुमसे सच की गुज़ारिश की थी
ख्वाब तुमने हमारे सजाए ही क्यूँ !
चलो आज फिर से दुश्मनी कर लें
दोस्तों की फितरत अब रास नहीं आती !
और ज़ेहन पे तारी हैं खुशबू की तरह !
आज फिर से गिला है तुमसे
बारहा प्यार जताने की यूँ कोशिश न करो !
मैंने तो तुमसे सच की गुज़ारिश की थी
ख्वाब तुमने हमारे सजाए ही क्यूँ !
चलो आज फिर से दुश्मनी कर लें
दोस्तों की फितरत अब रास नहीं आती !