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Saturday, September 21, 2013

बस , यूँ ही !

आज लौटा  हूँ तो , लगने लगे हो तुम अपने
भूला था इन गलियों को , खता मेरी ही थी
तुम तो खोल कर बाहें ,आतुर हो  स्वागत को
प्यार तो नहीं , ख्वाहिश सजा की मेरी ही थी
कैसे नहीं आता , पल जो  बीते , खलिश,
 खेंच कर ले ही आई
इतना भी कमज़र्फ नहीं ,
भूल तुम्हे , किसी और को  अपनाता ,
ये तो न कहूँगा ये अदा तो है ,
पर ये अदा  मेरी ही थी !
चलो भूल जायें -शिकवे- गिले .
फिर से नया  आशियाँ बनाएं  ,
इल्तिजा ये तो मेरी ही थी .