अनायास ही याद आ गयीं तुम !
कॉलेज के वो दिन
जब प्रेम के बीज अंकुरित हुए थे !
तुम्हारा पहला पत्र
जो एक छोटे से कागज़ के टुकड़े में था ,
लिपटा हुआ स्नेह सिक्त भावों से
प्रेम का विशाल वट-वृक्ष बना जो !
तुम्हारे उन पत्रों की आस में घंटों
दीवानों की तरह करता था
डाकिये का इंतजार
डाकिये का इंतजार
और
उसे देखते ही मन-मयूर नाच उठता था
और
जब कभी डाकिया अनदेखा कर आगे निकल जाता
तब
हजारों आशंकाएं , हजरों सवाल मन की तरंगों को मथने लगते
क्या हुआ होगा !
तुम्हारे पत्र बार-बार पढता था मैं
और हर बार , एक नई उमंग ....
एक नया ही अर्थ ,
निकलता था उन शब्द समूहों से !
वे पत्र देह बन जाते और
बिखेरते थे खुशबू
तुम्हारे अंदाज़ का पर्याय होते थे
वे पत्र !
आज भी ,किताबों के पन्नो से
जब-तब झांक लेते हैं
और मैं खुद को रोक नही पाता
उन्हें पढने से !
जबकि हज़ार तल्खियाँ हैं
जिंदगी की .
तुम्हारे वे पत्र
आज भी
खुशबू बिखेर जाते हैं !
6 comments:
आज तो डाकिया और पत्र दोनों ही गुम हो गए हैं हमारे जीवन से..... बहुत सुंदर भाव संजोये . .....
आज भी ,किताबों के पन्नो से
जब-तब झांक लेते हैं
और मैं खुद को रोक नही पाता
उन्हें पढने से !
जबकि हज़ार तल्खियाँ हैं
जिंदगी की .
तुम्हारे वे पत्र
आज भी
खुशबू बिखेर जाते हैं !
yaadon ka yun jhankna ...bahut hi sundar
वो खत के पुर्जे उड़ा रहा था, हवाओं का रुख दिखा रहा था.. सहेजिये इन्हें रूप बाबू, ये तमाम उम्र महान्कते रहने वाली खुशबू है!!
बहुत भीने अहसास संजोये हैं।
bahut hi sundar
जबकि हज़ार तल्खियाँ हैं
जिंदगी की .
तुम्हारे वे पत्र
आज भी
खुशबू बिखेर जाते हैं ...
How true !...very emotional creation. Thanks for sharing with us.
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