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Thursday, October 14, 2010

तल्ख़ होने से पहले,रिश्ते गर भूला दें तो !
महफ़िल के जगमगाते सितारें बुझा दें तो
तुम्हारे साये के मुन्तजिर क्यों रहें हम,
साये के नाजो-अंदाज़ ही मिटा दें तो !

चलो,रहमो-करम रहा तुम्हारा अब तलक
जियें तो ऐसे कि जिंदगानी गाती रही अब तलक
और देखो,किस कदर रुसवा किया ज़माने ने 
इस ज़माने के अस्तित्व ही भूला दें तो !

तुम ना सही कोई ना कोई तो है दिले बेकरार
किसी को रहता तो है हमारा भी इंतजार
तुम ना आये तो आ जायेगा कोई और भी
तुम्हारे इंतजार की शमा अब हम बुझा दें तो !



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