संसार के विधान का-
एक दृश्य यह भी है की,
एक 'आदर्श ' की काट है -
एक दूसरा आदर्श!
पर हम ऐसा भी तो नहीं कर सकते कि-
इन काट कि खातिर ,
चढ़ा दें इन आदर्शों कि बलि ,
हम पालेंगे आदर्श
यह जानते हुए भी कि,काट है उसकी-
परन्तु-गर हम चाहे तो, देखे तो,
पाएंगे एक आदर्श को
एक दूसरे आदर्श के-
समरूप!
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