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Sunday, September 5, 2010

रातों को !

न दिन को चैन है, न करार है, रातों को
अब तो बस खुमार ही खुमार है ,रातों को
इक अक्स तैरता रहता है,चश्म मे हरदम,
अब तो  उस अक्स के बीमार हम,रातों को
याद आये के न आये,कुछ और भी ऐ दिल,
याद आ ही जाता है,यार हमें, रातों को
कहें किससे हम अपने गम-ए- दिल की दास्ताँ 
हर शख्स ही जब है,बेजार, रातों को .
  

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