Pages

Tuesday, September 14, 2010

सरोकार !

मैंने अक्सर ये शब्द सुना है , मेरा कोई सरोकार नहीं है इन बातों से, और फिर मैं सोचने पर मजबूर हो जाता हूँ , क्या सचमुच!, क्या सचमुच,हम इतने असंवेदनशील हो गए हैं , कि कुछ बहुत सी महत्वपूर्ण बातों का हमसे कोई सरोकार नहीं होता, घर मे , कार्य के दौरान , मनोरंजन करते हुए, यहाँ तक कि आराम फरमाते हुए भी हमें सरोकार होता है, अपने आसपास के वातावरण से... और फिर भी महज़ औप्चारिक्तावस या यूँ ही हम कह देते हैं , हमारा कोई सरोकार नहीं है. मेरे एक परम मित्र हैं, मेरे साथ ही कार्यरत, बड़े ही सज्जन और बुद्धिमान . उम्र के तीसरे पड़ाव पर आकर, जैसा कि स्वाभाविक है ,थोड़े दार्शनिक और भगवद्भक्त हो गए हैं, पर वास्तविकता इसके इतर है, और कभी-कभी मुझे लगता है (वैसे ये मेरी व्यक्तिगत सोच है!)  के सचाई यह नहीं है , और जैसा कि व्यवहार से भी परिलक्षित होता है,
सरोकार सामाजिक कैसे हो पायें जब तल्खियाँ यूँ बढती जातीं हैं!
तुम कहते हो, है ये दुनिया का दस्तूर _पर क्या वो जिस्म जो जुदा हुआ ,कहीं पहले भी जुड़ा था .
मेरी गुज़ारिश थी ,ये ज़माना शायद कभी तो  समझ पायेगा , 
पर उफ़, ये ख्वाहिशें तो खाली दामन छू कर लौट आयीं.
इल्तिजा है ,ये मेरी उन हवाओं से , जो तुम तक भी ले जातीं हैं संदेशा प्यार का, 
पर रह गए टूटे अरमानों से ,.ये इल्तिजा भी यूँ ही बेआवाज़ होकर रह गयी.
खैर................. मैं कवि-ह्रदय होने के नाते अपने उदगार इन शब्दों से प्रकट करूँगा. पसंद आये या न भी आये तो भी, अपनी राय मुझे अवश्य दें, क्योंकि, मैं भी थोडा confuse हूँ...! उदगार पढ़ें!


कल शाम ही तो,मिला मुझसे-
भूत मेरा !
कहने लगा  -यार तुम नहीं सुधरोगे! 
पूछा मैंने-क्यों भई !ऐसा क्या कर दिया है मैंने.
कहने लगा-
यार, तुम न तो  चरण स्पर्श करते हो, 
ना ही करते हो-स्तुति गान,
तुम्हारा तो बस-
'परनिंदा' व आलोचनाओं मे ही रहता है ध्यान.
देखो, समझो, सीखो,
संसार के विधान को.
यदि चाहते हो उचाइयां छूना ,
तो, छोडो आलोचनाओं के ध्यान को!
रम जाओ,मक्खन लगाओ .
हो सके -नहीं-नहीं!
हो या न हो-पर,
कव्वे को हंस बताओ.
यार, तुम्हारा बिगड़ ही क्या जायेगा 
तुम्हारे कहने भर से -कव्वा तो हंस नहीं हो जायेगा.
हाँ, पर इतना अवश्य है -कि तुम ,
परेशानियो से बच जाओगे ,
धूनी रमोगे,
और!
बिना'हींग लगे न फिटकरी'
'चोखा ही चोखा' कहलाओगे!
                                    -रूप'
 

No comments: