आए भी__चले भी गए
खबर हो न पाई .
दावानल से जूझता ही रहा था ये दिल,
तब फिर तुमने ही दी थी एक बार -
ज़माने की दुहाई !
आखिर क्यूँ ---
हर बार ही होता है ऐसा ,
क्या अस्तित्व की पनप भी सीमित होती है !
फिर लो ही क्यूँ, ऐसे कुछ रिश्ते
खो जाते हैं जो, अँधेरे मे,गुमनामी के
महज़ दिल की तसल्ली को ,
तुम हर बार ऐसा करते हो .
कोई न कोई तो, कहीं न कहीं ,
ठेस पहुँचाता ही है .
ठोकर पत्थर के ही होते हैं-
अब तक तो यही समझा था .
प्यार की मार होगी इतनी गहरी
तुम पहले ही गर, बता देते................!
No comments:
Post a Comment