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Thursday, September 2, 2010

तुम --

तुम ----
खिलती कली सी, जूही की   
मदिरा  के छलकते प्याले सी.
तबस्सुम, लबो का तुम्हारा 
'रूप' कविताओं सा तुम्हारा
समर्पित हर लक्ष्य को,
शायद तुम, और केवल तुमही ,
हो सकते हो------साथी मेरे !

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