यादों के भंवर से उबरो ना ,
चुप न बैठो,कुछ तो बोलो ना
कलियाँ, चमन मे खिलखिलाती हैं,
तुम भी मन के द्वार खोलो ना !
जो बीत गया वो सपना था,
जो साथ है अब, वही सच है
तुम संग रहे,गमगीनी के,
बहारों के संग अब हो लो ना!
पंछी भी शोर मचाते हैं,
नव सुर मे तुम्हे बुलाते हैं
लहराओ,गाओ इनके संग
इस नव सुर मे तुम डोलो ना!
जो पाया तुमने,वो सुखकर था
जो खोया, भूलो उसे अभी
जो बीत गया,वो सपना था
जीवन मे उसको तो, लो ना !
-रूप
3 comments:
अच्छा प्रयास...अच्छी रचना
http://veenakesur.blogspot.com/
अच्छी कविता ........
मेरे ब्लॉग कि संभवतया अंतिम पोस्ट, अपनी राय जरुर दे :-
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html
यादों के भंवर से उबरो ना ,
चुप न बैठो,कुछ तो बोलो ना
कलियाँ, चमन मे खिलखिलाती हैं,
तुम भी मन के द्वार खोलो ना !
सुंदर.....!!
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