बड़ा मज़ेदार एक वाकया याद आ गया आज यूँ ही, मेरे एक मित्र ने फोन किया, कहने लगे " यार, आज नेट पर बैठा" , बहुत ही इंटरेस्टिंग शगल है .क्या सचमुच..क्या नेट पर बैठ सकते है , वैसे शाब्दिक तौर पर मुझे लगता है, अगर नेट पर बैठे भी तो,क्या सचमुच बैठना हो पाता है, कुछ-बाएं से ,कुछ दायें से और कुछ बीच से निकल नहीं जाता!और अगर निकल जाता है , तो बैठने का आनंद कहाँ आया ? आराम मिला क्या! नहीं , मेरी बातों पर गौर फरमाएं और नेट पर बैठने के बाद महसूस करें कि जो चाहा था , जो सोचा था , या कि फिर जो कुछ भी ज़ेहन मे था , क्या उसे कर पायें! कहीं दिग्भ्रमित तो नहीं हो गए! रास्ता तो नहीं भटक गए. चलिए मैं आपको, आगे की कहनी सुनाता हूँ .वैसे ये कहानी नहीं हकीकत है पर रुकिए "कहने चला था गमे दिल कि दास्ताँ, कह बैठा रूमानियत की कहानी". आप सोचेंगे...यार,या तो ये खुद बहक गया है या फिर हमें बहका रहा है , पर नहीं ,यह 'चंडूखाने की गप्प ' बिलकुल भी नहीं है,न ही यह कोरा बकवास है, हम अक्सर करना चाहते हैं कुछ और, और हो जाता है कुछ और! भई मियां, मै सच कह रहा हूँ .न हो तो आजमा लीजिये और नेट पर बैठ कर देख लीजिये ,फिर अगर मेरी बात सही साबित न हुई , तो जो काले चोर की सजा ,वो मुझे! तमाम fake id 's भरे पड़े हैं नेट पर ,कोई rock कर रहा है तो कोई cool है.और तो और , बुढ़िया ने जवानी की फोटू लगा रखी है और खालिस "भैसा " खूबसूरत बालिका बना बैठा आपको ललचा रहा है, कुछ तो ऐसे भी मिल जायेंगे जो हैं तो पुरुष "अरे भई-so called ",पर महिला बनकर न केवल आपका खून जला रहे हैं , बल्कि आपकी जेबें भी ढीली कर रहे हैं. मैंने अपने उन मित्र महोदय को एक शुद्ध , ताज़ी ,सरसों के तेल मे तली हुई सलाह दे डाली "भैये, ज़रा संभलकर, कहीं सिर मुड़ाते ही ओले न पड जाएँ "... पर जैसा कि होता आया है.सलाह भी कहीं मानने की चीज़ है, और वह भी मुझ जैसे नाचीज़ की अनचाही सलाह, सो नहीं माने और किसी नवयौवना चेल्सिया से दोस्ती गाँठ बैठे. और फिर शुरू हुई ,फ्री chatting ..नशा कुछ और चढ़ा, जैसा कि आमतौर पर होता है , मियां बन बैठे मजनू और लगे फुनियाने. धीरे -धीरे नशा और चढ़ा और बात डेटिंग तक आ गई .पहले तो अगले ने खूब गच्चा दिया और इनके खून को पानी बनाकर पिया. फिर एक दिन इन्हें एक ख़ास जगह पर आमंत्रित किया गया, भैये सज धज कर पहुंचे , सोचा था मीठी ,मधुरा, के होठों की मदिरा पियेंगे,पर पड गए लेने के देने ! निर्धारित स्थान पर कुछ चार -छह इनके जैसे ही मजनू पहुंचे , इन्हें बड़े प्यार से अँधेरे कोने मे सरका लिया और दे दनादन ! खूब खातिरदारी हुई इनकी और साहब जो बन -सँवरकर चेन से सुसज्जित होकर पहुंचे थे उसे गवांकर, पिटे-पिटाये घर पहुंचे. घरवालों ने जब इनकी प्यारी सी सूरत पर map बना देखा,तो लगी पुछायी ! साहब क्या कहते ,कहा - "मुँह के बल गिर पड़ा था". मेरी मुलाकात पर इन्होने " तीसरी कसम " के नायक की तरह कसम खाई , कि अब chatting संभलकर करूँगा और netting पर भी पूरा का पूरा बैठूंगा. तो भैय्ये , नेट पर बैठिये , पर संभलकर.............
अच्छा , अब बन्दे को दीजिये इजाजत. अरे मियां,मुझे भी तो नेट पर बैठना है!
1 comment:
सही कहा रूप जी एक बार मैं भी साइबर कैफे में बैठा था, साथ के टेबल पर एक ६० वर्षीय पुरुष बैठे थे ! जहाँ नेट की स्पीड स्लो हुई तो कनखियों से हमने देखा की वो किसी लड़की की आई डी बना कर चैट करने में मसरूफ थे !
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