Tuesday, September 28, 2010
आज सोचा , एक नया नाम दूँ अपने पोस्ट को, बड़ी देर लगी यह सोचने मे की कौन सा नाम उपुक्त होगा, आखिर ,अर्थ भी तो निकलना चाहिए ना ,किसी नाम का, तो 'अनुभूति' कुछ ठीक लगा. सच तो यही है, कि अपने जीवन काल मे तमाम अनुभवों को ही तो आखिर शब्दों का रूप दिया जा सकता है .(अगर लफ्फाजी ना की जाय तो,)खैर, उमड़ते-घुमड़ते विचार, विचारों का तारतम्य, वैसे कुछ चालाकी भी! हाँ, अपने लिए नहीं .पर मुझे कई बार लगता है, कि अधिकतर हम वो पढ़ते हैं, जो पढना नहीं चाहते ,अनायास ही! अभी-अभी दो ब्लॉग पोस्ट्स पढ़ी है मैंने, और मुझे लगा, समय बर्बाद कर रहा हूँ मै अपना, अब कोई छींके,तो ब्लॉग, कोई पा.. ,तो ब्लॉग. ये क्या है भाई, अरे कुछ ऐसा लिखें ,जिसका अर्थ हो, और कुछ नहीं ,तो भाषा का ही मर्म समझ मे आये, चलो, कई बार casual होना ठीक है, पर उसकी भी कोई सीमा होनी चाहिए.अब आप कहेंगें' किसी ने ज़बरदस्ती तो की नहीं, कि आप पढो ही' पर, कहा ना मैंने, कई बार अनायास ही ....... मैं अपने विचार थोप नहीं रहा हूँ, और यह भी सच है कि बुद्धिजीवियों के बीच एक सार्थक बहस की आवश्यकता ,अवश्यम्भावी है.तो फिर , क्यूँ ना कुछ ऐसा लिखे , जिसका समुचित अर्थ हो , जो झकझोरे, उद्वेलित करे , और मंथन के लायक हो .और कुछ नहीं हो तो संवेदनशील तो अवश्य हो, मैं जनता हूँ , सभी सहमत नहीं हो सकते मेरे इन भावों से. पर मुझे लगता है कि इस पर कम-से -कम एक सोच तो ज़रूरी है, आप क्या कहते हैं......?
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2 comments:
रूप बाबू! यहाँ कुछ लोग अपना छबि बनने के लिए लिखते हैं, कुछ लोग झगड़ा फसाद निपटाने के नाम पर ब्लॉग लिखते हैं, मगर सच्चाई लिखने से हर कोई डरता है.. ज़रा मौका मिले तो हमरा दोसरका ब्लॉग देख आईए.. http://samvedanakeswar.blogspot.com
आप नाम अच्छा चुने हैं.. हम त आते रहेंगे!! सार्थक लिखिए, दिल से लिखिए! सुभकामनाएँ!
इसी मसले पर ध्यान खींचने को एक कविता लगाई थी कुछ रोज पहले:
चाहता
तो लिख देता
एक कविता
तुम्हारे लिए
लेकिन
जब कविता
कुछ कह न पाये
तब सोचता हूँ
बेहतर है
चुप रह जाये!!!
-समीर लाल ’समीर’
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