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Thursday, September 16, 2010

मैंने भी बहना सीख लिया

मैंने भी बहना सीख लिया
पानी के इस रेले मे ,
जीवन की आपाधापी मे
मैंने भी ढहना सीख लिया.

जब कभी नज़र फेरा मैंने
विगत भूत था चुपचाप खड़ा
पढने का करता हुआ प्रयत्न ,
जीवन के किंचित आखर को
ठेला इसको,उसको खींचा 
बढ़ जाऊं  मै आगे की और
पर रहा खिसकता हरदम मै 
छोर कोई, पूरा ना मिला 
आखिर,छोड़ा प्रयत्न अपना 
धेले मै ढहना सीख लिया 
जीवन  की आपाधापी मे
मैंने भी बहना सीख लिया 

क्यूँ करुं कोई, शिकवा या गिला 
कर सकता था जो,वही किया
नियति ने जो कुछ रक्खा था 
बस था मेरा और मुझे मिला .

बस हुआ यही पूरा सपना
सपने मे जीना सीख लिया
जो मेरा था , पाया मैंने
बाकी न कभी कोई भीख लिया 
मैंने भी बहना सीख लिया.......








6 comments:

SATYA said...

अच्छा लगा पढ़कर,
सुन्दर रचना.
यहाँ भी पधारें:-
अकेला कलम...
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Akshitaa (Pakhi) said...

कित्ता प्यारा लिखा आपने..बधाई.
________________________________
'शुक्रवार' में चर्चित चेहरे के तहत 'पाखी की दुनिया' की चर्चा...

sheetal said...

Bahut sundar

ZEAL said...

क्यूँ करुं कोई, शिकवा या गिला
कर सकता था जो,वही किया
नियति ने जो कुछ रक्खा था
बस था मेरा और मुझे मिला .

sundar rachna

.

रूप said...

nice one,commendable..............

Urmi said...

मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मेरे इस ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है!
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बहुत सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!