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Tuesday, August 17, 2010

likhne ke pahle

लिखने के पहले की परिस्थितियों के बारे मे, कई उदगार पहले भी व्यक्त किये जा चुके होंगे, पर मुझे लगता है , कि लिखने के पहले संग्रहित भावनाओं से अत्यधिक महत्वपूर्ण वे उद्देश्य होते हैं, जिनके लिए लिखा जाय, या यूँ कह ले कि लिखना तब ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है जब उसमे कोई उद्देश्य निहित हो, अनेक रचनाकारों व पाठको ने मुझसे कहा है, कि कविताएँ उतना प्रवाव नहीं छोडती, जितना कि गद्य! मै इससे असहमत हूँ, और संभवतः यह सत्य नहीं है , कविताओं मे व्यक्त भावनाएं सांकेतिक होती हैं और अधिकांश उनका अर्थ वह नहीं होता ,जिन्हें समझा जाता है या कि , पाठक उसे अपने विचारों के साथ आत्मसात करने का प्रयास करते हुए , एकरसता स्थापित करना चाहता है........................ आगे और भी......

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