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Sunday, August 15, 2010

आज तुम मुस्कुराये ऐसे


















आज
तुम मुस्कुराये ऐसे ,
कोई
पंखुरी छू जाये जैसे
तेरे
भींगे रुखसार से लगा,
कोई
चांदनी मे नहा आये जैसे।
टिमटिमाते हैं,गगन मे तारे,
कोई
इशारों से बुलाये जैसे
तुम्हारे द्वार से लौटी यूँ पुकार
छूकर लहर जाये जैसे
यह मौसम का मादक संगीत,
रूमानी ग़ज़ल छिड़ जाये जैसे !

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।