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Saturday, August 14, 2010

कटी पतंग









कटी
पतंग.................
दूर तक हवा के संग
उड़ती चली जाती है,--------
लहराती डोर
हवा के तेज़, थपेड़ो के बीच!
जाने,
कितनी उमंगें,कितने अरमां-
लेकर उड़ी थी यह,
वादा किया था......
डोर के संग,
साथ नहीं छूटेगा -
आसमा के दूसरे छोर तक!

छोड़ा साथ -----
मंजिल का, नहीं है
कोई ठिकाना ।
दूर तलक -एक अंतहीन यात्रा
अनुभवहीन!
बस थपेड़े ही बनकर ,
रह गयी नियति !
क्या ,कभी चाहा था,
परिणाम ऐसा !
पर कौन है-जिसे कारण कहा जाय।
तो आओ--फिर उड़ें ,
शायद अबकी बार,
आसमाँ के दूसरे छोर तक -
हो, अपना साथ!

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