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Sunday, August 8, 2010

रिमझिम : दो चेहरे

खिड़कियों से झांकते अक्स __
रिमझिम बूंदे बतार की
चिथड़ी धोती से धन्पता
एक बुढ़ापा !
न जाने किन ख्यालों मे है __
ये जहाँ .........
कि खुशहाल हैं हम
सोने कि इस धरा पर ।
पर जो ,
निकाल रहे हैं, सोना .....
इस धरती का -
क्या उन्हें पत्थर भी है ,
उपलब्ध!
एक घर बनाने को ?
क्या लकड़ी _मयस्सर है उन्हें_
बनाने को एक खिड़की
और झाँकने को ________
रिमझिम _बूँदें बहार की.......!

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