Pages

Tuesday, August 31, 2010

नियति


निगल चुकी है ,बड़ी मछली- छोटी को,
कुलांचे मारती हुई, फुहारें छोडती हुई -
पानी के !
इतराती ,इठलाती ,पर हिलाती
निष्ठुर नियति-
उदर मे है-- बड़ी मछली के !
छोटी के रेशे -परत दर परत,
निचोड़े जा रहे हैं !-
पर,
साँस -नहीं थमती,
प्रयास नहीं रुकता ,
आशाएं मिटती नहीं !
बाकी हैं -उम्मीदें अभी भी.
शायद ! 
नियति ,मुस्कुराये-छोटी पर भी.
पर ,बड़ी-जो इठलाती है, __
नज़र  जमाती है _
किसी "दूसरी छोटी " पर,
और हाँ ________
"नियति का खेल" अभी जारी है !
                     -- रूप
 

No comments: