तुम्हारे लिए !/अंतहीन
अपनों की पहचान ही नहीं
दे पाते अपने !
हम चाहते हैं- पूछे जायं
जांचे और परखे जायं
दुलराये व पुचकारे जायं !
सहलाये , हौले से कोई
बालों को हमारे .
स्पर्श मुलायमियत का
छू जाय हमारी पेशानी को
पर ...........
हो जाते हैं ....
ये हकीकत भी ,
कभी कभी स्याह सपने !
झिडकियां ,प्रेम की हों -
चीखें भी,
जब हमें पास बुलाएं
कभी भागम-भाग,
कभी, रूठें-मनाएं
कभी शोरो-गुल, तो कभी
हम साथ गीत गाएं
आते हैं ऐसे पल ही
कितने !
बेफिक्री का ये आलम ,
जब साथ छोड़ जायेगा
सोचेंगे तब,
क्या खोया ,
क्या पाया
शब्द , बेमानी हैं.
जिसे जाना है, जिसे भोगा है
जिसे परखा है, जिसे टोका है
यादों की एल्बम का,
एक हिस्सा है
और...
यही जीवन का सच भी !
4 comments:
क्यों होता है ऐसा !
अपनों की पहचान ही नहीं
दे पाते अपने !
बहुत सार्थक प्रस्तुति..जीवन की वास्तविकता को बहुत ही सुंदरता से उकेरा है..
ज़िन्दगी के अनुभव को सुन्दरता से प्रस्तुत किया है।
Sharmaji aur vandanaji , dhanyawad . Prayas jari hai...
आपकी प्रस्तुति प्रशंसनीय है.बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.aabhar ..
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