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Monday, February 21, 2011

            तुम्हारे लिए !/अंतहीन 


क्यों होता है ऐसा !
अपनों की पहचान ही नहीं
 दे पाते अपने !

हम चाहते हैं- पूछे जायं
जांचे और परखे जायं
दुलराये व पुचकारे जायं !

सहलाये , हौले से कोई
बालों को हमारे .
स्पर्श मुलायमियत का
छू जाय हमारी पेशानी को
पर ...........
हो जाते हैं ....
ये हकीकत भी ,
कभी कभी स्याह सपने !
झिडकियां ,प्रेम की हों -
चीखें भी,
जब हमें पास बुलाएं
कभी भागम-भाग,
कभी, रूठें-मनाएं
कभी शोरो-गुल, तो कभी
हम साथ गीत गाएं
आते हैं ऐसे पल ही
कितने !
बेफिक्री का ये आलम ,
जब साथ छोड़ जायेगा
सोचेंगे तब,
क्या खोया ,
क्या पाया
शब्द , बेमानी हैं.

जिसे जाना है, जिसे भोगा है
जिसे परखा है, जिसे टोका है
यादों की एल्बम का,
एक हिस्सा है
और...
यही जीवन का सच भी !

4 comments:

Kailash Sharma said...

क्यों होता है ऐसा !
अपनों की पहचान ही नहीं
दे पाते अपने !

बहुत सार्थक प्रस्तुति..जीवन की वास्तविकता को बहुत ही सुंदरता से उकेरा है..

vandana gupta said...

ज़िन्दगी के अनुभव को सुन्दरता से प्रस्तुत किया है।

रूप said...

Sharmaji aur vandanaji , dhanyawad . Prayas jari hai...

Shalini kaushik said...

आपकी प्रस्तुति प्रशंसनीय है.बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.aabhar ..