कुछ लिखा तो था !
कुछ लिखा तो था !
पता नहीं क्या .दीवार पर लिखी इबारत की तरह
या कि शायद फटे अख़बार के
उड़ते पन्ने पर !
कुछ तो था , जो अनकहा
रह गया था
पढ़ नहीं पाया था मैं .
बस लिखकर रह गया था .
क्या था वो.!
एक दबी ख्वाहिश
एक दमित इच्छा
कल देखा था उसे
हवा में दूर तक उड़ते हुए,
कोई अवरोध नहीं था .
दूर तक निर्विघ्न ,
पुरवइओं में कुलांचे भरते हुए
क्षितिज के पार , असीमित उड़ान
और तब , लगा था ये
शायद इबारत की
तरह दीवार पर चिपका होता
तो बेमानी होता !
3 comments:
गहन अनुभूति ...सुन्दर रचना
क्षितिज के पार , असीमित उड़ान
और तब , लगा था ये
शायद इबारत की
तरह दीवार पर चिपका होता
तो बेमानी होता !
गहन विचार...... बेहतरीन पंक्तियाँ
क्षितिज के पार , असीमित उड़ान
और तब , लगा था ये
शायद इबारत की
तरह दीवार पर चिपका होता
तो बेमानी होता !
बेहतरीन पंक्तियाँ.....
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