मैं
मैं,
नदी का तीर नहीं,
जो तुम्हारी प्यास बुझाऊं
ना ही ओस की बूँद हूँ ,
जो सीपी में गिरकर
मोती का रूप पाऊं
मैं,
वह नींद भी नहीं ,
जो ख्वाबों के बाग़ सजाकर
तुम्हारी उन्मुक्तता के गीत गाऊं.
ना ही बादल का वो टुकड़ा हूँ ,
जो रिमझिम फुहार बरसाउं.
मैं ,बासंती गुलाल भी नहीं ,
जो तुम्हारे चेहरे की
रंगत में उजास लाऊं
मैं तो वह अंगारा हूँ ,
जो तुम्हारे हृदय की
तपिश को और बढ़ाऊंगा
तुम्हें ठोकर देकर ही
"मंदिर का देव"बनाऊंगा !
मैं,
नदी का तीर नहीं,
जो तुम्हारी प्यास बुझाऊं
ना ही ओस की बूँद हूँ ,
जो सीपी में गिरकर
मोती का रूप पाऊं
मैं,
वह नींद भी नहीं ,
जो ख्वाबों के बाग़ सजाकर
तुम्हारी उन्मुक्तता के गीत गाऊं.
ना ही बादल का वो टुकड़ा हूँ ,
जो रिमझिम फुहार बरसाउं.
मैं ,बासंती गुलाल भी नहीं ,
जो तुम्हारे चेहरे की
रंगत में उजास लाऊं
मैं तो वह अंगारा हूँ ,
जो तुम्हारे हृदय की
तपिश को और बढ़ाऊंगा
तुम्हें ठोकर देकर ही
"मंदिर का देव"बनाऊंगा !
9 comments:
nice lines sir
thanx for sharing with us..
तुम्हें ठोकर देकर ही
"मंदिर का देव"बनाऊंगा ...
खूबसूरत अभिव्यक्ति ...कठोर संयम को बताती अच्छी रचना
मैं तो वह अंगारा हूँ ,
जो तुम्हारे हृदय की
तपिश को और बढ़ाऊंगा
तुम्हें ठोकर देकर ही
"मंदिर का देव"बनाऊंगा !
आपकी कविता में जिस भाव बोध को अभिव्यक्ति मिली है ...निश्चित रूप से गंभीरता और व्यंग्य का पुट होते हुए भी सार्थक है ...आपका आभार सार्थक लेखन के लिए
तुम्हें ठोकर देकर ही
"मंदिर का देव"बनाऊंगा
सारगर्भित पोस्ट सोचने को मजबूर करती..
शायद मैंने पहली बार आपका व्लाग देखा है लो जीवन में एक गलती और !!!!
मैं तो वह अंगारा हूँ ,
जो तुम्हारे हृदय की
तपिश को और बढ़ाऊंगा
तुम्हें ठोकर देकर ही
"मंदिर का देव"बनाऊंगा !
बहुत सुन्दर सार्थक रचना..
.
This should be our attitude if we genuinely want to motivate someone .
Thanks for this beautiful and inspiring creation.
.
Thank u Dr. Divya. Ur comment 'll always b a motivation too.
अति सुन्दर! रूप का स्वरुप देख भाव-विभोर हुआ,
आप को बधाई....!
Dhanywad.aaplogon ki tippaniyan mere liye urjashrot hai.
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