तुम्हारी याद मे ख्वाब बुनू तो कैसे!
जब पूनो का चाँद अपनी कशिश से ,
बिखेरता है चांदनी ,
अंगड़ाई लेती हुई शीतल हवा ,
दुलराती है,
कहती है कानो मे हौले से
कैसे विरह की अग्नि तडपाएगी .
मै हूँ ना , पास तुम्हारे .
बाँट लूँगी दर्द सारा.
तुम्हारे हिस्से का .
तल्खियाँ ,मेरे पास आने दो.
देखो ये बहारों का रूप लेकर
फिर से तुम्हे दुलरायेंगी
यादों की कशिश , तुम्हे गमगीनी के
आगोश से दूर लेकर जाएगी.
तुम फिर मुस्कुराओगे.
प्यार के गीत गाओगे.
सारा आलम महक उठ्ठेगा
तुम्हारी शोख अदाओं से .
और तुम.....
खुद को यार के करीब पाओगे !
3 comments:
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मै हूँ ना , पास तुम्हारे .
बाँट लूँगी दर्द सारा.
तुम्हारे हिस्से का ।
वाह! रूप जी ,
इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई । बहुत सुन्दर रचना है !
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As you enquired about Gwl....I lived there for 7 years . I own a house and a clinic there in city center.
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रूप जी!
साहिर साहब का कलाम याद आ गया..
तुम अपना रंजो ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो!!
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