सपनीले नैनों मे तेरे
तिर आई घनघोर घटा
ये नीर ख़ुशी के, या गम के !
झिलमिल तारे,चटका ये चाँद
चहुँ और दीप्त है साँझ-विहान
फिर भींगी क्यों तेरी पलकें !
कलरव करती,मदमाती सरिता
उत्तुंग शिखर से गिर कर भी
करती है देखो, मधुर गान
नयना तेरे हैं क्यों छलके !
तुझमे अभिहित है यह सृष्टि
तू ही तू है है जग की दृष्टि
फिर काहे का गमगीन शमा
सूरज डूबे या चाँद ढलके !
2 comments:
बहुत उम्दा भाव!
सुन्दर !!
Post a Comment