क्रोध हृदय का उमड़ा है,
मन को लगी है ठेस कहीं.
पर शायद यह दोष हुआ ,
शायद तुम्हारा दोष नहीं.
चंचल मन की स्थिरता
झांको, देखो,परखो, समझो
परिणाम प्रेम का पाओगे
जब चखोगे,हृदय की कटुता.
आदर्शों के है,झंझावत,
या दोषी मन की पीड़ा है,
नभ विशाल का प्रतिविम्ब
या धरती की शीतलता है.
टकराकर- पर्वत शिखरों से ,
मेघों मे आई लघुता है.
शांत ह्रदय के सागर मे
दर्षित होता कहीं क्रोध नहीं..
क्रोध हृदय का उमड़ा है,
मन को लगी है ठेस कहीं.
पर शायद यह दोष हुआ ,
शायद तुम्हारा दोष नहीं.
5 comments:
beautiful poem... awesome
अच्छी कविता...
humne jo yu hale dil byan kar diya to logo ne kha thoda personal ho gya
its very nice.....sir ji
चंचल मन की स्थिरता
झांको, देखो,परखो, समझो
परिणाम प्रेम का पाओगे
जब चखोगे,हृदय की कटुता.
वाह...सच्ची...खरी बात...बेहतरीन रचना...बधाई
नीरज
ek behatreen rachna....
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