Pages

Thursday, October 7, 2010

एक बेहद पर्सनल सी कविता: शायद आवश्यक है!

क्रोध हृदय का उमड़ा है,
मन को लगी है ठेस कहीं.
पर शायद यह दोष हुआ ,
शायद तुम्हारा दोष नहीं.
चंचल  मन की स्थिरता
झांको, देखो,परखो, समझो
परिणाम प्रेम का पाओगे
जब चखोगे,हृदय की कटुता.
आदर्शों के है,झंझावत,
या दोषी  मन की पीड़ा है,
नभ विशाल का प्रतिविम्ब  
या धरती की शीतलता है.
टकराकर- पर्वत शिखरों से ,
मेघों मे आई लघुता है.
शांत ह्रदय के सागर मे
दर्षित होता कहीं क्रोध नहीं..

क्रोध हृदय का उमड़ा है,
मन को लगी है ठेस कहीं.
पर शायद यह दोष हुआ ,
शायद तुम्हारा दोष नहीं.

5 comments:

POOJA... said...

beautiful poem... awesome

वीना श्रीवास्तव said...

अच्छी कविता...

love being human said...

humne jo yu hale dil byan kar diya to logo ne kha thoda personal ho gya

its very nice.....sir ji

नीरज गोस्वामी said...

चंचल मन की स्थिरता
झांको, देखो,परखो, समझो
परिणाम प्रेम का पाओगे
जब चखोगे,हृदय की कटुता.

वाह...सच्ची...खरी बात...बेहतरीन रचना...बधाई

नीरज

dk said...

ek behatreen rachna....