तुम्हारे लिए !
विरोध के स्वर विरल हो जाते हैं, जब समाज सबलों की अनैतिकता का समर्थन करने लगता है ,और यह अधिकतर तब होता है जब लाभ कुछ तथाकथित प्रतिष्ठित लोगों की चेरी होती है , ऐसे में सच्चा , सज्जन , इमानदार और सटीक व्यक्ति भी पथभ्रष्टता को प्रश्रय देने के बारे में सोचने लगता है पर सच्चरित्र जीवन की सच्चाई तो यह नही हो सकती ! ऐसे में अत्यधिक आवश्यकता होती है , आत्मबल की ,और विरोध के विपरीत ख़म ठोककर खड़े होना ही बहादुरी का पर्याय है . जिस प्रकार दीये की लौ तेज़ आंधी में विचलित तो होती है , पर बुझती नहीं और अधिक जोर लगाकर उसका सामना करती है !
आज यह विचार अधिक प्रासंगिक है, क्योंकि सामाजिक उत्थान व स्वयं की जीवन्तता को सिद्ध करने हेतु यह आवश्यक है .वर्तमान परिस्तिथियों में सामाजिक विद्रूपता व नीति ह्रास पर अंकुश हेतु यह आवश्यक है की नौजवान पीढ़ी विरोध करे , सार्थक विरोध करे ! और जो परिस्तिथियाँ ,सामाजिक उत्थान का अवरोध बनती हैं, उसे तोड़कर नए समाज का निर्माण करे !
बहुत ज़रूरी है , हम जो काम हाथ मे लेते हैं, उसकी परिणति तक पहुंचें , यह नही कि बस शुरू किया और विरोध होते ही ढीले पड़ गए !
मेरी पूर्व में लिखी एक कविता यहाँ प्रासंगिक है ,और इसलिए मैं इसका पुनर्लेखन यहाँ पर करता हूँ ............
विपदाएं तो आएँगी _सखा मेरे
जब भी लोगे तुम एक दृढ़ संकल्प
ठोकरें तो लगेंगी ही राह मे
बनना चाहोगे __जब एक विकल्प
नियति ने क्या ___कभी मारी है ठोकर !
उस संत को ,भरा हो जिसमे __केवल
___आत्मबल ____
ये , आत्मबल ही तुम्हे पहुँचायेगा
शिखर तक !
तुम अगर आज करो ____ एक संकल्प
विकल्प _तुम तो हो सकते हो
होगा न कोई , तुम्हारा विकल्प ....
अब यह पत्र/चिटठा लिखने कि आवश्यकता इसलिए पड़ी है,कि मेरी एक चर्चा में नौजवान मित्रों द्वारा कुछ अवसाद कि झलकियाँ देखने को मिलीं, और उनके लिए .............
विरोध के स्वर विरल हो जाते हैं, जब समाज सबलों की अनैतिकता का समर्थन करने लगता है ,और यह अधिकतर तब होता है जब लाभ कुछ तथाकथित प्रतिष्ठित लोगों की चेरी होती है , ऐसे में सच्चा , सज्जन , इमानदार और सटीक व्यक्ति भी पथभ्रष्टता को प्रश्रय देने के बारे में सोचने लगता है पर सच्चरित्र जीवन की सच्चाई तो यह नही हो सकती ! ऐसे में अत्यधिक आवश्यकता होती है , आत्मबल की ,और विरोध के विपरीत ख़म ठोककर खड़े होना ही बहादुरी का पर्याय है . जिस प्रकार दीये की लौ तेज़ आंधी में विचलित तो होती है , पर बुझती नहीं और अधिक जोर लगाकर उसका सामना करती है !
आज यह विचार अधिक प्रासंगिक है, क्योंकि सामाजिक उत्थान व स्वयं की जीवन्तता को सिद्ध करने हेतु यह आवश्यक है .वर्तमान परिस्तिथियों में सामाजिक विद्रूपता व नीति ह्रास पर अंकुश हेतु यह आवश्यक है की नौजवान पीढ़ी विरोध करे , सार्थक विरोध करे ! और जो परिस्तिथियाँ ,सामाजिक उत्थान का अवरोध बनती हैं, उसे तोड़कर नए समाज का निर्माण करे !
कौन कहता है , आसमान में सुराख़ नहीं हो सकता ,
एक पत्थर तो तवियत से उछालो यारों !
मेरी पूर्व में लिखी एक कविता यहाँ प्रासंगिक है ,और इसलिए मैं इसका पुनर्लेखन यहाँ पर करता हूँ ............
विपदाएं तो आएँगी _सखा मेरे
जब भी लोगे तुम एक दृढ़ संकल्प
ठोकरें तो लगेंगी ही राह मे
बनना चाहोगे __जब एक विकल्प
नियति ने क्या ___कभी मारी है ठोकर !
उस संत को ,भरा हो जिसमे __केवल
___आत्मबल ____
ये , आत्मबल ही तुम्हे पहुँचायेगा
शिखर तक !
तुम अगर आज करो ____ एक संकल्प
विकल्प _तुम तो हो सकते हो
होगा न कोई , तुम्हारा विकल्प ....
अब यह पत्र/चिटठा लिखने कि आवश्यकता इसलिए पड़ी है,कि मेरी एक चर्चा में नौजवान मित्रों द्वारा कुछ अवसाद कि झलकियाँ देखने को मिलीं, और उनके लिए .............
तुम चीर दो सीना चट्टानें आज़म का
रास्ता खुद-ब-खुद दीदारे-यार आएगा !
2 comments:
वाह! बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ है!
आत्मबल से सब जीता जा सकता है- जग जीता जा सकता है...सार्थक लेखन!!
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