और कुछ देर ठहर
और कुछ देर ठहर, और कुछ देर न जा ज़िन्दगी की शाम यूँ उदास न कर.
उम्मीदों की शमा अभी तो जलाई है
अभी तो बस तेरी याद आयी है.
यादों की मदहोशी को बर्बाद न कर
जिंदगी की शाम को यूँ उदास न कर.
और कुछ देर ठहर, और कुछ देर न जा
तेरे सानिध्य से दिल मेरा महक जाता है
बर्बादे-इश्क भी कुछ आस सा दिलाता है
हमारी आस को तू और भी बे -आस न कर .
और कुछ देर ठहर..............................
तेरे काँधे पे सर रखकर, सुकूँ पा तो लूँ मैं
उदास रात को ,कुछ और तो महका लूँ मैं.
इस रूत को हसीं और तो बना लूँ मैं
तेरे गेसुओं के फैलाव का विस्तार तो कर
और कुछ देर ठहर....... और कुछ देर न जा ...!
1 comment:
प्रेममयी पंक्तियाँ..... सुंदर
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