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Wednesday, October 20, 2010

यात्रा वृतांत

बलिया से इलाहबाद रेलगाड़ी से जा रहा था .रिजर्वेसन नहीं मिलने के कारण जनरल बोगी मे सवार हुआ. ज़ल्दी इतनी कि सफ़र के साथी अर्थात कोई रिसाला, समाचार पत्र,कोई पुस्तक भी नहीं खरीद पाया.खैर, ट्रेन मे अत्यधिक भीड़, किसी तरह अपने आपको ठूंसा और सामने ही ऊपर के बर्थ पर , जहाँ लोग सामान वगैरह रखते हैं, अपने आपको पटक दिया और सांसों को नियंत्रित करने का प्रयास भी ! तभी निचली सीट पर  शोर-शराबा शुरू ! देखता क्या हूँ , एक तरफ एक बुज़ुर्ग से सज्जन बैठे हैं , दूसरी तरफ एक नवयुवक और एक सभ्रांत से लगने वाले व्यक्ति उसी मे अपने -आपको ठेलने के प्रयत्न मे लगे हैं, पर उनके ठीक सामने के बुज़ुर्ग को आपत्ति है,और उन्होंने अपनी टाँगे अड़ा रक्खी हैं ताकि वे बैठ ना पायें, खैर किसी तरह उन सज्जन को भी स्थान प्राप्ति हो गयी .बुज़ुर्ग के साथ शायद उनका बेटा,उन्हें छोड़ने आया है, इसी बीच सज्जन ने कह दिया 'उम्र बढ़ने के साथ ज़रूरी नहीं की बुद्धि का विकास हो ही जाये' बस इतना सुनना था की बुज़ुर्ग के पुत्र , जो उन्हें छोड़ने आये थे, हत्थे से उखड पड़े और लगे गाली-गलौच करने , मार-काट की नौबत आ पहुंची . कोई भी पक्ष झुकने को तैयार नहीं, किसी तरह बीच-बचाव किया गया. ट्रेन चल दी, बुज़ुर्ग और सज्जन दोनों ही शांत हो गए . चूँकि मेरे पास खुद को व्यस्त रखने का कोई साधन नहीं था , मैंने सोचा आज यात्रिओं का वृतांत ही सुना जाय,और सफ़र इसी तरह काटने का प्रयास किया जाय .ट्रेन अगले स्टेशन पर रुकी, कुछ यात्री चढ़े, कुछ उतर भी गए .मेरे सामने की उपरी बर्थ पर कुछ तीन-चार लड़के आकर बैठ गए, शायद कहीं कोई भरती वगैरह के लिए जा रहे थे. थोड़ी देर की चुप्पी के बाद उनमे चुहलबाजी शुरू हो गई और जैसा कि अक्सर देखा जाता है , उन सबों मे बड़ा आत्मीय (!)  सम्बन्ध था , एक दूसरे को रिश्तों मे संबोधित कर रहे थे, ( आप समझ ही गए होंगे!) बातचीत की शुरुआत कामनवेल्थ गेम्स से हुई , मुद्दा था -सरकार द्वारा कामनवेल्थ गेम्स पर अनायास  पैसों का खर्च. मुझे उनकी जानकारी और सरकार को सरासर कोसने पर आश्चर्य हो रहा था , उनके हिसाब से यह सब अनावश्यक था .और सरकार को इन पैसों का उपयोग किसी विकास कार्यों पर खर्च करना था. उनमे से एक इस बात पर असहमत था और कामनवेल्थ गेम्स  के आयोजन को सही ठहरा रहा था . थोड़ी ही देर बाद विषयांतर हो गया और मुद्दा बदल कर आरक्षण पर आ गया. कहने लगे , साले मादर..,(माफ़ कीजियेगा, ये मेरे शब्द नहीं हैं.) सरकार भी देश को डूबाने पर लगी है, अब देखो.. जनरल के लिए कम्पटीशन मे जहाँ १२० नम्बर चाहिए वहां एस-सी, एस-टी को साठे नम्बर चाहिए.आर्मी मे सीना भी कम्मे चौड़ा चाहिए , लम्बाई भी कम्मे होनी चाहिए. अबे अब साठ नम्बर वाला साठे लायक काम न करेगा....  अब मेरी समझ मे नहीं आया,मैं क्या करूँ , टिपण्णी करने की इच्छा तो हो रही थी , पर वे इतने सभ्य! थे कि हिम्मत नहीं कर पा रहा था. ( पर है यह सोचने वाली बात !) आपकी राय जानना चाहूँगा! यदि उचित समझें तो बताने का कष्ट करेंगे. थोड़ी ही देर बाद फिर विषयांतर हो गया,अबकी बात बदलकर क्रिकेट पर आ गयी, शुरुआत हुई धोनी महाशय से! अबे धोनिया  कुच्छोऊ  नहीं खेलता , साला(!) खाली पैसा कमाने मे लगा है , पहिले जब कैप्टन नहीं था तब अच्छा खेलता था . सचिनवा नै रहे तो इंडिया टिमे डूब जाय. अब मुझे उनकी बातों मे थोडा रस आने लगा था . मैंने उत्साह वर्धन हेतु कह दिया. सचमुच सचिन का मुकाबला कोई नहीं कर सकता ,पोंटिंग हो सकता है, सचिन का रिकार्ड तोड़े. बस, इसके बाद तो उन लड़कों की चर्चा क्रिकेट के सेलेक्शन से लेकर सचिन की जन्मकुंडली  तक चली. कहते रहे . पोंटिंग वा साला! बहुते बदमाश  है, पर सचिन का रिकार्ड कब्बो नहीं तोड़ पायेगा. सचिनवा मे जो पावर है , केतनो टूटेगा, फूटेगा लेकिन अन्दर आके दनादन शतक जोड़ देगा ! पोंटिंग वा का बापो ऐसा नहीं कर सकता है, वैसे भी उसका खेल ख़तम.और जानते हैं, इ सेलेक्टर लोग भी तो टेलेंट  को नहिये खेलने देगा . सब अपना भाई-भतीजा लोग को घुसता है , आइ प़ी एल  मे देखिये केतना अच्छा  खेलाडी लोग आया, सौरभ शुक्ल जैसा लोग. फिर , बात इंडिया -आस्ट्रेलिया वन  डे मैच पर आ गई. हरभजन का नया नाम! हरिभजन सुनने को मिला, बड़ा बढ़िया खेलता है , जरुरत पड़ने पर छक्को मारता है, लेकिन देखो,उसको भी नहीं छोड़ा सबब. अस्ट्रेलिया वाला भी उसको हटाने  के फेर मे मंकी वाला इल्जाम लगा दिया. एंड्रू साईं मंडवा भी पीछे ही लग गया था. चलो ई अच्छा हुआ की क्रिकेट बोर्ड थोडा ठीके ठाक रहा,नै तो हरिभजन्वा का भी कामे तमाम था. परिचर्चा या कह लें वार्ता चलती ही रहती पर इस बीच हम प्रयाग पहुँच चुके थे , मैंने अपना बोरिया -बिस्तर. अरे भैय्या , एक छोटा सा बैग ही था , उठाया और चल पड़े .

तमाम उम्र काटी है बुजुर्गियत  मे
कभी धूल से इक पत्थर तो चुना होता !

2 comments:

रूप said...

Sabbai padhte hain. Comment koi nai likhta. Are bhai, bura-bhala kuchchhoo likhvo ......!

yaduvanshi said...

भाई जी लिखते रहिए ..कोइ नहि है टक्कर मे..