वह रोता बचपन!
धूल से अटा नंगा बदन,
फैलाये हाथ,कुछ बोलते,
आवाज़ मे तल्खी लिए
वह रोता बचपन!
आँख से बहते आंसू
गालों पर एक लकीर सी,
सूखी हुई कहती है ये
इन सांसों की कीमत नहीं.
वह रोता बचपन!
दिन खेलने के गोद मे,
तपती हुई रेत की मानिंद
जलती हुई धरा पर
फैलाये हाथ, कुछ बोलते
वह रोता बचपन!
(कविवर 'निराला' को श्रद्धान्जली स्वरुप)
( निराला जी की स्टाइल से प्रभावित,'वह तोडती पत्थर'!)
1 comment:
अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई के पात्र है
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