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Sunday, October 3, 2010

एक सन्देश  : प्रेम का !
यह सन्देश उन समुदायों को जो शायद अब समझने लगें हैं , कि नफरत केवल बंटवारा और क्लेश को जन्म देती है ,और अगर थोड़ी-बहुत कलुषता मन मे कही रह गई है , या कुछ तत्व उनमे दुराव पैदा करने का प्रयास कर रहें हैं ,तो मेरी गुज़ारिश को अपनाएं!


प्रेम से सींचो अंतर्मन को,
शांति ह्रदय मे पाओगे.
जीवन कि मधुरता का
आनंद भी तुम बिखरावोगे.

ध्येय अगर हो समता का
प्रकृति होगी स्वर्ग समान,
भटकोगे नहीं-मृगतृष्णा मे
आधार स्वछन्द बनाओगे.
प्रेम से सींचो अंतर्मन को....

अपार स्रोत से भरा हुआ,
तन-मन यह तुम्हारा है.
मरू-थल मे रह कर भी,
मधुमास नेह बरसाओगे.

प्रेम से सींचो अंतर्मन को .........( आगे और भी है...)

2 comments:

मनोज कुमार said...

प्रेरक रचना। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
आयी हो तुम कौन परी..., करण समस्तीपुरी की लेखनी से, “मनोज” पर, पढिए!

नीरज गोस्वामी said...

न चित्र बल्कि रचना भी अद्वितीय है...आप के इस ज़ज्बे को सलाम...इतनी खूबसूरत रचना के लिए ढेरों बधाई स्वीकार करें...आज आपके ब्लॉग पर आना सार्थक हुआ...आपका लेखन अत्यंत प्रभावशाली है...लिखते रहिये... एक शेर पढ़िए:

इक सुकूं मिलता है दिलको आज़मां कर देखिये
जब अजाँ के संग बजती मन्दिरों की घन्टियां